अमेज़ॅन के फाउंडर जेफ बेजोस ने मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) का पद छोड़ने का ऐलान किया है. उनकी जगह पर अमेज़ॅन वेब सर्विसेज के चीफ एंडी जेसी को सीईओ की जिम्मेदारी दी जाएगी.
अमेज़ॅन के फाउंडर जेफ बेजोस ने मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) का पद छोड़ने का ऐलान किया है. एक स्टार्टअप को दुनिया की सबसे अधिक मूल्यवान कंपनी के रूप में खड़ा करने वाले जेफ बेजोस इस साल के आखिरी तक सीईओ पद छोड़ देंगे. उनकी जगह पर अमेज़ॅन वेब सर्विसेज के चीफ एंडी जेसी को सीईओ की जिम्मेदारी दी जाएगी.
अमेज़ॅन में हिस्सेदारी के आधार पर दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति जेफ बेजोस ने कहा कि वह तीसरी तिमाही में सीईओ पद छोड़ देंगे. अमेज़ॅन वेब सर्विसेज के चीफ एंडी जेसी को सीईओ बनाया जाएगा. यह खबर तब आई जब अमेज़ॅन के मुनाफे में रिकॉर्ड स्तर की बढ़ोतरी हुई है, क्योंकि कोरोना काल में लोगों ने सबसे अधिक ऑनलाइन खरीदारी की.
अमेज़ॅन के कर्मचारियों को लिखी एक चिट्ठी में जेफ बेजोस ने कहा कि वह महत्वपूर्ण अमेज़ॅन पहलों में लगे रहेंगे, लेकिन अब वह अपने परोपकारी पहलों जैसे अपने वन डे फंड और बेजोस अर्थ फंड के अलावा अंतरिक्ष अन्वेषण और पत्रकारिता समेत अन्य व्यावसायिक उपक्रमों पर ध्यान देंगे.
57 साल के जेफ बेजोस ने 1994 में अपने गैराज में अमेज़ॅन की स्थापना की और इसे एक ऐसे वेंचर में विकसित किया जो ऑनलाइन रिटेल पर हावी है, जिसमें स्ट्रीमिंग म्यूजिक और टेलीविजन, किराने का सामान, क्लाउड कंप्यूटिंग, रोबोटिक्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और बहुत कुछ है. उनके अन्य व्यवसायों में द वाशिंगटन पोस्ट अखबार और निजी स्पेस फर्म ब्लू ओरिजिन शामिल है.
जेफ बेजोस की जगह सीईओ बनने वाले एंडी जेसी ने 1997 में अमेज़ॅन बतौर मार्केटिंग मैनेजर ज्वाइन किया और 2003 में कंपनी के क्लाउड सर्विसेज डिवीजन AWS की स्थापना की. जेफ बेजोस ने कहा कि एंडी को कंपनी में हर कोई जानता है और वह अमेज़ॅन में काफी समय से काम कर रहे हैं, वह बेहतरीन लीडर होंगे, मुझे भरोसा है.
सैन्य ताक़त में असाधारण बढ़ोतरी से लेकर ख़ुद को एक संपन्न देश बनाने और दुनिया का मैन्युफ़ैक्चरिंग हब बनने तक का सफ़र चीन ने रॉकेट की रफ्तार से तय किया है. 1979 में अर्थव्यवस्था को विदेशी निवेश के लिए खोलने और आर्थिक सुधार लागू करने के महज़ 40 सालों में चीन के आर्थिक और सैन्य सुपरपावर बनने के सफ़र को पूरी दुनिया ने हैरत भरी नज़रों से देखा है.
साल 2019 के आख़िर में चीन ने दुनिया को तब फिर चौंका दिया जब उसके एक शहर वुहान से ख़तरनाक कोरोना वायरस फैलना शुरू हो गया.
जब तक कोई समझ पाता कोविड-19 वायरस पूरी दुनिया में पैर पसार चुका था. इस एक वायरस ने पूरी दुनिया को लाचार और पंगु बना दिया और अगला पूरा एक साल इस महामारी से जंग में कटा. अभी भी यह लड़ाई जारी है.
इस दौरान आम लोगों से लेकर पश्चिमी दुनिया के दिग्गज देशों तक सब की आमदनी और अर्थव्यवस्थाएं धराशायी हो गईं. अभी भी दुनिया इस महामारी के असर से अपनी अर्थव्यवस्थाओं को उबारने की कोशिशों में लगी हुई हैं.
हालांकि, इस मामले में भी चीन ने पूरी दुनिया को चौंका दिया है. जब पूरी दुनिया की ज्यादातर अर्थव्यवस्थाएं नकारात्मक ग्रोथ या कॉन्ट्रैक्शन (अर्थव्यवस्थाओं का संकुचन या सिकुड़ना) का सामना कर रही हैं या फिर मामूली ग्रोथ के लिए भी संघर्ष कर रही हैं, उस वक्त पर चीन ने ग्रोथ के बढ़िया आंकड़ों से दुनिया को हैरत में डाल दिया है.
चीन की इकनॉमी जिस रफ्तार से बढ़ रही है वह कोरोना से जूझ रहे दूसरे देशों के लिए कल्पना से भी ज्यादा है.
क्रिसिल के चीफ़ इकनॉमिस्ट डी के जोशी मानते हैं कि कोरोना पर जल्द कंट्रोल पाने की वजह से चीन अपनी आर्थिक ग्रोथ को रिकवर करने में सफल रहा है.
डी के जोशी कहते हैं, “सबसे पहले महामारी चीन में शुरू हुई और उन्होंने ही सबसे जल्दी इस पर क़ाबू पा लिया. पूरी समस्या की जड़ ही कोविड-19 है. ऐसे में अगर आप कोविड-19 पर कंट्रोल कर सकते हैं तो आप आर्थिक गतिविधियों को भी बढ़ा सकते हैं. इसी वजह से केवल एक तिमाही में ही चीन की ग्रोथ नेगेटिव हुई और उसके बाद इसमें धीरे-धीरे तेजी आने लगी.”
आईएमएफ़ का अनुमान, 2021 में 7.9 फ़ीसद रफ़्तार से बढ़ेगा चीन
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) ने 2021 के लिए चीन की ग्रोथ का पूर्वानुमान घटाकर 7.9 फ़ीसद कर दिया है.
पहले आईएमएफ़ का अनुमान था कि 2021 में चीन की अर्थव्यवस्था 8.2 फ़ीसद की रफ्तार से आगे बढ़ेगी.
ग्रोथ फोरकास्ट को घटाने के बावजूद 7.9 फ़ीसद का आंकड़ा ऐसा है जिसे हासिल करना शायद दुनिया के दूसरे किसी भी देश के लिए मुमकिन नहीं है.
क्या हैं चीन के आंकड़ें?
पिछले साल चीन की अर्थव्यवस्था 2.3 फ़ीसद की रफ्तार से बढ़ी है. 2020 की शुरुआत में कोविड-19 के शटडाउन की वजह से पैदा हुई सुस्ती के बावजूद चीन ग्रोथ करने में कामयाब रहा है.
अंतरराष्ट्रीय आर्थिक विकास, व्यापार, निवेश और टेक्नोलॉजी में विशेषज्ञता रखने वाले नई दिल्ली स्थित थिंक टैंक रिसर्च एंड इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर डिवेलपिंग कंट्रीज (आरआईएस) के प्रोफ़ेसर डॉ. प्रबीर डे कहते हैं कि अगर कोविड के दौर को देखें तो पिछले साल फ़रवरी से इस साल जनवरी तक के दौर में चीन ही दुनिया की एकमात्र ऐसी बड़ी इकनॉमी है जो लगातार पॉज़िटिव ग्रोथ से बढ़ रही है.
हालांकि, चीन की अर्थव्यवस्था पिछले चार दशकों में पहली बार 2020 में सबसे सुस्त रफ्तार से बढ़ी है.
लेकिन, डॉ. डे कहते हैं, “चीन की जीडीपी का साइज़ मौजूदा प्राइस के हिसाब से क़रीब 10 लाख करोड़ डॉलर का है. ऐसे में इसमें अगर 1 फ़ीसदी की भी बढ़ोतरी होती है तो इससे भी एक बड़ा असर पैदा होता है.”
2020 की आख़िरी तिमाही यानी अक्तूबर से दिसंबर के बीच चीन की ग्रोथ 6.5 फ़ीसद रही है जो कि एक ज़बरदस्त आंकड़ा है.
इकनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट के प्रिंसिपल इकनॉमिस्ट यू सु के मुताबिक़, “जीडीपी आंकड़ों से पता चलता है कि अर्थव्यवस्था तकरीबन सामान्य हो चुकी है. यह रफ्तार जारी रहेगी, हालांकि उत्तरी चीन के कुछ प्रांतों में कोविड-19 के मौजूदा मामलों के चलते अस्थाई रूप से इसमें उतार-चढ़ाव आ सकता है.”
जुलाई से सितंबर के क्वॉर्टर में चीन की ग्रोथ पिछले साल की इसी तिमाही के मुकाबले 4.9 फ़ीसद रही थी.
2020 के पहले तीन महीनों में पूरे देश में फ़ैक्टरियों और मैन्युफैक्चरिंग प्लांट्स के शटडाउन के चलते चीन की ग्रोथ नेगेटिव 6.8 फ़ीसद रही थी.
दूसरी तिमाही में चीन की ग्रोथ 3.2 फ़ीसद रही और इस तिमाही से ही चीन रिकवरी की राह पर चल पड़ा.
ग़ौर करने वाली बात यह भी है कि चीन ने यह ग्रोथ एक ऐसे वक़्त में हासिल की है जबकि पूरी दुनिया में कोरोना वायरस फैलने को लेकर चीन को लेकर ग़ुस्सा था और चीन के साथ कारोबार न करने के मंसूबे दुनियाभर में बनाए जा जा रहे थे.
क्या हैं वजहें?
वरिष्ठ अर्थशास्त्री प्रोफ़ेसर अरुण कुमार कहते हैं कि चीन की अर्थव्यवस्था के दोबारा खड़े होने के पीछे दो-तीन वजहें हैं.
वे कहते हैं, “पहला तो चीन ने महामारी को बड़ी तेज़ी से कंट्रोल कर लिया. इसके बाद उन्होंने अर्थव्यवस्था को जल्दी ही खोल दिया. महामारी को कंट्रोल कर लेने के चलते चीन को दूसरे देशों जैसी दिक़्क़तों का सामना नहीं करना पड़ा.”
प्रो. कुमार कहते हैं कि चीन ने कोरोना वायरस को अपने यहां दूसरे इलाक़ों में फैलने नहीं दिया. उन्होंने इसे हुवेई प्रांत में ही कंट्रोल कर लिया. इस वजह से चीन अर्थव्यवस्था दोबारा खड़ी करने में सफल रहा.
एक्सपोर्ट और मैन्युफैक्चरिंग में रफ्तार
चीन का एक्सपोर्ट सेक्टर दिसंबर 2020 में भी तेज़ रफ्तार से बढ़ा है. दिसंबर में चीन का ट्रेड सरप्लस रिकॉर्ड पर पहुँच गया.
पूरी दुनिया में हेल्थकेयर उपकरणों और वर्क फ्रॉम होम की तकनीकों की माँग ने चीन के एक्सपोर्ट को बरक़रार रखा है.
प्रो. अरुण कुमार कहते हैं, “ऐसा लग रहा था कि महामारी के चलते चीन का एक्सपोर्ट में बड़ी गिरावट आएगी, वैसा नहीं हुआ.”
“सोचा ये जा रहा था कि कोविड-19 फैलने के चलते बाक़ी देशों में माँग कमज़ोर होगी, लेकिन उल्टा ये हुआ कि दुनियाभर के देश चीन से सामान ख़रीदने लगे.”
वे कहते हैं कि लग रहा था कि चीन से नाराज़गी के चलते दूसरे देश वहां से सामान नहीं ख़रीदेंगे, लेकिन, ऐसा नहीं हुआ.
दिसंबर में चीन का निर्यात 18.1 फीसदी की रफ्तार से बढ़ा है. जबकि नवंबर में ये ग्रोथ 21.1 फ़ीसद थी.
क्रिसिल के डी के जोशी कहते हैं, “चीन की ग्रोथ बड़े तौर पर मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर से आ रही है. चीन का एक्सपोर्ट भी दमदार बना हुआ है. इसके अलावा, चीन की सरकार इंफ्रास्ट्रक्चर पर भी बड़ा पैसा लगा रही है.”
अमरीका को एक्सपोर्ट भी दिसंबर में एक साल पहले के मुक़ाबले 34.5 फ़ीसद बढ़ा है. दूसरी ओर, अमरीकी सामानों का चीन में आयात भी 47.7 फ़ीसद बढ़ा है जो कि जनवरी 2013 के बाद सबसे ज्यादा है.
पूरे साल के लिए चीन का अमरीका से ट्रेड सरप्लस 317 अरब डॉलर रहा है जो कि 2019 के मुक़ाबले सात फ़ीसदी ज्यादा है.
पिछले साल सितंबर में चीन के एक्सपोर्ट के आंकड़ों से ही मज़बूत रिकवरी के संकेत मिलने लगे थे.
इस दौरान चीन का एक्सपोर्ट 2019 के सितंबर महीने के मुक़ाबले 9.9 फ़ीसद की रफ्तार से बढ़ा, जबकि आयात में 13.2 फ़ीसद की ग्रोथ दर्ज की गई.
फ़िलहाल ऐसा दिख रहा है कि चीन का मैन्युफ़ैक्चरिंग सेक्टर रिकवर हो चुका है. इंडस्ट्रियल आउटपुट में 7.3 फ़ीसद की ग्रोथ दिखाई दी है.
प्रो. डे कहते हैं कि चीन का अभी भी ज्यादातर देशों के साथ ट्रेड सरप्लस बना हुआ है. चीन ने अपने यहां बड़े पैमाने पर रिफॉर्म किए हैं और कारोबारी माहौल को अनुकूल बनाया है.
नक़दी डालना
साल 2020 की शुरुआत में चीन के केंद्रीय बैंक ने ग्रोथ और रोज़गार को सपोर्ट करने के क़दम उठाने शुरू कर दिए.
पीपुल्स बैंक ऑफ़ चाइना ने पिछले साल फ़रवरी में रिवर्स रेपो के ज़रिए अर्थव्यवस्था में कुल 1.7 लाख करोड़ युआन (242.74 अरब डॉलर) की पूंजी डाली थी.
साल के अंत में यानी दिसंबर में चीन के केंद्रीय बैंक ने 950 अरब युआन (145 अरब डॉलर) मीडियम-टर्म लेंडिंग फ़ैसिलिटी के जरिए लगाए हैं.
दिसंबर ऐसा लगातार पाँचवां महीना था जबकि चीन ने इस टूल का इस्तेमाल करते हुए अर्थव्यवस्था में नकदी डाली है. साथ ही केंद्रीय बैंक ने क़र्ज़ पर ब्याज दरों को भी 2.95 फ़ीसद पर स्थिर रखा है.
पिछले एक साल में चीन में 2.44 लाख करोड़ युआन के नए लोन बांटे गए हैं. ख़ासतौर पर ये लोन छोटी कंपनियों को दिए गए हैं.
ट्रैवल बूम और घरेलू खपत पर ज़ोर
हालांकि, कोरोना के चलते अंतरराष्ट्रीय ट्रैवल पर भले ही प्रतिबंध हों, लेकिन चीन में घरेलू ट्रैवल ने अर्थव्यवस्था में फिर से जान फूंकने का काम किया है.
अक्तूबर में चीन में मनाए जाने वाले गोल्डन वीक में लाखों की संख्या में चीनी लोगों ने ट्रैवल किया. गोल्डन वीक के दौरान हर साल छुट्टियां होती हैं.
आठ दिन की इन छुट्टियों के दौरान चीन में 63.7 करोड़ ट्रिप्स हुईं और इनसे करीब 69.6 अरब डॉलर का रेवेन्यू पैदा हुआ.
चीन की अर्थव्यवस्था मूल रूप में निवेश और मैन्युफैक्चरिंग पर आधारित है. लेकिन, चीन इसे खपत और सर्विसेज आधारित बनाने पर फोकस कर रहा है.
प्रो. डे कहते हैं कि चीन ने अपने यहां इंफ्रास्ट्रक्चर समेत दूसरे सेक्टरों में भारी निवेश किया है और इसके चलते डिमांड पैदा की है.
डे कहते हैं कि 2009 ग्लोबल फाइनेंशियल क्राइसिस के बाद चीन ने इससे सबक लिया और अपनी इकनॉमी को एक्सपोर्ट और मैन्युफैक्चरिंग आधारित से घरेलू खपत और सर्विसेज मार्केट आधारित इकनॉमी पर शिफ्ट करना शुरू कर दिया.
हालांकि, डी के जोशी कहते हैं कि चीन में घरेलू खपत ज्यादा नहीं बढ़ी है और चीन पहले की तरह से इंफ्रास्ट्रक्चर को बूस्ट करने के जरिए इसे बढ़ा रहा है. पहले चीन की खपत ज्यादा थी जिसमें अभी तक रिकवरी नहीं हुई थी.
चीन में घरेलू बचत दर पिछले 10 साल के ऐतिहासिक स्तर से भी ऊपर चल रही है. जोशी के मुताबिक, ऐसे में ग्रोथ की वजह चीन में खपत में बढ़ोतरी नहीं है.
प्रो. अरुण कुमार कहते हैं कि चीन ने महामारी के दौरान अपने यहां खपत पर काफी फोकस किया है. वे कहते हैं, “दूसरे देशों में बेरोजगारी बढ़ने से खपत भी कम हो गई. ऐसे में चीन ने जो नीतियां अपनाईं, उससे चीन को तेजी से उबरने में मदद मिली.”
चीन को अलग-थलग करने की मुहिम फीकी पड़ी
कोविड-19 के चरम के वक्त दुनियाभर में चीन को लेकर जो ग़ुस्सा था वो भी अब दिखाई नहीं देता और हर देश चीन से सामान मंगा रहा है. फार्मा, मेडिकल और दूसरी सभी डिमांड चीन के पास जा रही है.
प्रो. डे कहते हैं चीन के आइसोलेशन की बातें बेमानी साबित हुई हैं. इसके अलावा, ऐसा भी हल्ला खूब मचा था कि कंपनियां चीन छोड़कर जाना चाहती हैं, लेकिन 30-35 कंपनियों को छोड़कर सारी कंपनियां वहीं रुकी हुई हैं. इसकी वजह यह है कि चीन निवेश करने वालों को हर मुमकिन सुविधा और सुरक्षा देता है.
प्रो. अरुण कुमार कहते हैं, “चीन से सप्लाई पर कुछ प्रतिबंध लगाने के चलते भारत में ऑटोमोबाइल सेक्टर में दिक्कतें आ रही हैं. इसका नुकसान हमें ही हो रहा है.”
कंपनियों का अचानक चीन छोड़कर जाना आसान काम भी नहीं है. सप्लाई चेन जैसी चीजों को एक दिन में बदला नहीं जा सकता है. चीन की सप्लाई चेन बेहद मजबूत है और अगर कोई डायवर्सिफाई करना भी चाहता है तो उसमें वक्त भी लगता है और उसका खर्च भी बैठता है.
विदेशी कंपनियों के चीन छोड़कर जाने के सवाल पर क्रिसिल के चीफ इकनॉमिस्ट डी के जोशी कहते हैं, “ऐसा पहले से हो रहा है. चीन से लेबर इंटेंसिव कारोबार पहले से दूसरे देशों में जा रहे हैं. मसलन, टेक्सटाइल का कामकाज बांग्लादेश शिफ्ट हो चुका है. महामारी के वक्त इस तरह के कम मार्जिन वाले कामों के चीन से दूसरे देशों में शिफ्ट होने में तेजी आ गई है.”
वे कहते हैं, “चीन अब महंगे इलेक्ट्रॉनिक्स आइटमों जैसे सेक्टरों पर ही फोकस कर रहा है.”
चीन का आरसीईपी की अगुवाई करना
चीन समेत एशिया-प्रशांत महासागर क्षेत्र के 15 देशों ने नवंबर 2020 में ‘दुनिया की सबसे बड़ी व्यापार संधि’ पर दस्तख़त किए हैं.
जो देश इस व्यापारिक संधि में शामिल हुए हैं, वो वैश्विक अर्थव्यवस्था में क़रीब एक-तिहाई के हिस्सेदार हैं.
‘द रीजनल कॉम्प्रीहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप’ यानी आरसीईपी में दस दक्षिण-पूर्व एशिया के देश हैं. इनके अलावा दक्षिण कोरिया, चीन, जापान, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड भी इसमें शामिल हुए हैं.
प्रो. डे कहते हैं कि इस एग्रीमेंट के लिए 12 साल से बातचीत चल रही थी. इसमें चीन का एक ही इंटरेस्ट है- कारोबार और ट्रेडिंग. ये एग्रीमेंट इसी रणनीति का हिस्सा है. आरसीईपी में चीन को छोड़कर जो 14 देश हैं उन सब के साथ चीन का ट्रेड सरप्लस है.
ईयू के साथ कारोबारी समझौता
इसके अलावा यूरोपीय यूनियन और चीन के बीच एक बड़ी इनवेस्टमेंट डील पर भी सहमति बन गई है. अमरीका के नए बनने वाले राष्ट्रपति जो बाइडन के ईयू को इस डील पर जल्दबाज़ी न करने की सलाह देने के बावजूद ईयू और चीन इस समझौते पर सैद्धांतिक रूप से राज़ी हो गए हैं.
इस डील को कॉम्प्रिहैंसिव एग्रीमेंट ऑन इनवेस्टमेंट (सीएआई) का नाम दिया गया है और इसके शुरुआती ड्राफ्ट को दोनों पक्षों की मंज़ूरी दिसंबर के आख़िर में मिल चुकी है.
डी के जोशी कहते हैं, “चीन के यूरोपीय यूनियन के साथ इनवेस्टमेंट डील और आरसीईपी समझौते ये दिखाते हैं कि महामारी का चीन के ऊपर कोई ख़ास असर नहीं हुआ है. यहां तक कि ईयू के साथ समझौते में तो चीन कई तरह की रियायतें और शर्तों को मानने के लिए भी राज़ी हो गया है.”
इस एग्रीमेंट के तहत यूरोपीय कंपनियों को चीन के बाज़ार में दाख़िल होने के ज्यादा मौक़े मिलेंगे और वे इलेक्ट्रिक कारों, निजी अस्पतालों, रियल एस्टेट, टेलीकाॉम क्लाउड सर्विसेज समेत कई सेक्टरों में निवेश कर पाएंगी.
चीन विदेशी कंपनियों से टेक्नोलाॉजी ट्रांसफ़र की ज़रूरत को भी ख़त्म करेगा और अपने यहां पारदर्शिता बढ़ाएगा.
माना जा रहा है कि इस डील के ज़रिए चीन यूरोपीय देशों का बड़ा निवेश अपने यहां हासिल करने में सफल रहेगा.
प्रो. डे कहते हैं कि यूरोप में भी चीन का तगड़ा निवेश है और हर तरह का सामान चीन मुहैया करा रहा है.
अमरीका, भारत और दूसरी अर्थव्यवस्थाएं क्यों पिछड़ीं?
बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में भारत उन देशों में शामिल है जहां इकनॉमी को सबसे बड़ा झटका लगा है. इसके अलावा, अमरीका और दूसरे देश भी पहले से सुस्ती के दौर में बने हुए थे और कोविड-19 ने इन हालातों को और बुरा बना दिया.
प्रो. कुमार कहते हैं, “चीन के मुक़ाबले भारत को देखा जाए तो मेरे हिसाब से इस साल देश की इकनॉमी क़रीब 25 फ़ीसद संकुचित होगी. हमारे यहां असंगठित क्षेत्र को ग्रोथ के आंकड़ों में शामिल ही नहीं किया जाता. इस वजह से सही आंकड़े नज़र नहीं आते.”
प्रो. कुमार कहते हैं, “अमरीका में लोगों ने कोरोना को लेकर ज्यादा सतर्कता नहीं दिखाई. इन वजहों से वहां बार-बार लॉकडाउन लगाना पड़ा. इसके चलते यूएस में इकनॉमी रिकवर नहीं पाई. दूसरी ओर, चीन ने अपने यहां इसे सख्ती से कंट्रोल कर लिया, जबकि जिस तरह से चीन से यह वायरस फैलना शुरू हुआ था वहां सबसे ज्यादा मौतें होनी चाहिए थीं. लेकिन, चीन इसे रोकने में सफल रहा. अपनी अर्थव्यवस्था को दोबारा पटरी पर लाने में उन्हें इससे मदद मिली.”
हालांकि, क्रिसिल के चीफ़ इकनॉमिस्ट डी के जोशी कहते हैं कि ग्रोथ के लिहाज़ से भारत की तुलना चीन से नहीं की जा सकती है. चीन एक अलग उदाहरण है. कोरोना को रोकने में भारत ने दूसरे देशों के मुक़ाबले अच्छा काम किया है.
जोशी कहते हैं कि शुरुआत में भारत की ग्रोथ तेज़ी से गिरी, लेकिन बाद में इसमें उम्मीद से तेज़ रिकवरी भी हुई है.
पिछले 2-3 दशकों में चीन की ग्रोथ
चीन ने क़रीब 40 साल पहले आर्थिक सुधारों और कारोबारी उदारीकरण की नीतियां लागू कीं. उस वक़्त तक चीन एक बेहद ग़रीब, एक जगह रुका हुआ, केंद्रीय रूप से नियंत्रित और वैश्विक अर्थव्यवस्था से कटा हुआ देश था.
1979 में चीन ने अपने बाज़ारों को खोलने और विदेशी व्यापार को इजाज़त देने का फ़ैसला किया. इसके बाद देखते ही देखते चीन दुनिया की सबसे तेज़ी से आगे बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में शुमार हो गया.
2018 तक चीन की वास्तविक जीडीपी ग्रोथ 9.5 फ़ीसदी के औसत से आगे बढ़ी है. विश्व बैंक ने इसे “इतिहास में किसी भी बड़ी अर्थव्यवस्था का सबसे तेज़ रफ्तार से टिकाऊ विस्तार” क़रार दिया था.
हालांकि, चीन की अर्थव्यवस्था की ग्रोथ कमज़ोर पड़ी है और यह 2007 में 14.2 फ़ीसद की रफ्तार से 2018 में घटकर 6.6 फ़ीसद पर आ गई है.
पिछले दो दशकों में चीन की औसत आर्थिक ग्रोथ क़रीब नौ फ़ीसद रही है. ऐतिहासिक तौर पर चीन एक मज़बूत ग्रोथ रेट के साथ आगे बढ़ा है. 21वीं सदी के पहले दशक में चीन की ग्रोथ दहाई के अंक में रही है.
1 फरवरी को मोदी सरकार संसद में साल 2021-22 का आम बजट पेश करेगी. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन का तीसरा बजट होगा. पिछले कई सालों से परंपरा चल रही है कि बजट भाषण लोकसभा में ही होता है, इस बार भी ऐसा ही होगा. परंपरा ये भी है कि आम बजट से एक दिन पहले आर्थिक सर्वे पेश किया जाता है. और इस हिसाब से 31 जनवरी को आर्थिक सर्वे पेश होना चाहिए था लेकिन उस दिन रविवार है और संसद नहीं चलेगी. तो कल यानी शुक्रवार को ही आर्थिक सर्वे सदन के पटल पर रख दिया जाएगा. तो हर साल हम बजट के वक्त आर्थिक सर्वे का बार बार नाम सुनते हैं. क्या होता है ये आर्थिक सर्वे, कौन तैयार करता है और क्यों तैयार किया जाता है? और इस बार के आर्थिक सर्वे में क्या खास होगा, इस पर बात करते हैं.
आर्थिक सर्वे वित्त मंत्रालय एक अहम सालाना दस्तावेज होता है जिसे वित्त मंत्री लोकसभा और राज्यसभा के पटल पर रखती हैं. वित्त मंत्रालय के डिपार्टमेंट ऑफ इकनॉमिक अफेयर्स की इकनॉमिक्स डिवीज़न, आर्थिक सर्वे तैयार करती है. और ये सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार की देखरेख में तैयार होता है. कौन हैं अभी मुख्य आर्थिक सलाहकार – कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यम.
तो आर्थिक सर्वे में होता क्या है?
दो तरह की बातें होती हैं – पहली तो ये कि पिछले एक साल में देश की अर्थव्यवस्था कैसी रही. सरकार का पैसा किस सेक्टर में कितना गया, देश में उद्योगों की हालत कैसी रही, रोज़गार कितना रहा, कृषि क्षेत्र का हाल क्या है, कितना हमने आयात-निर्यात किया. इन सब विषयों का डेटा होता है. दूसरा, आर्थिक सर्वे में अगले साल की अर्थव्यवस्था का अनुमान दिया जाता है. ये बताया जाता है कि किस सेक्टर में कितनी ग्रोथ हो सकती है, और उसकी वजह बताई जाती हैं. यानी नए वित्त वर्ष में अर्थव्यवस्था तेज़ी से दौड़ेगी तो क्यों दौड़ेगी उसकी वजह बताई जाती है, या खराब रहेगी तो क्यों रहेगी, ये वजह बताई जाती है. एक तरह से आर्थिक सर्वे बजट का आधार तय करता है. बजट में सरकार ने किस सेक्टर को कितना फंड अलोकेट किया है, इसका तर्क आर्थिक सर्वे के आंकड़ों में खोजा जाता है.
पिछले साल यानी 2020-21 के आर्थिक सर्वे में देश की जीडीपी ग्रोथ रेट 6 से 6.5 फीसदी रहने का अनुमान जताया गया था. इसके अलावा इस सर्वे में वित्त वर्ष 2019-20 में कृषि क्षेत्र में ग्रोथ 2.8 फीसदी बताई गई थी, इंडस्ट्रियल ग्रोथ 2.5 फीसदी बताई थी. सर्विस सेक्टर में 6.9 फीसदी की ग्रोथ रेट बताई थी. लेकिन ज़्यादातर अनुमान गड़बड़ा गए. क्यों? कोरोना और लॉकडाउन की वजह से. मौजूदा वित्त वर्ष अप्रैल 2020 से शुरू हुआ था और तब देश में सबसे सख्त लॉकडाउन था. सब कुछ बंद था और ऐसा अगले कई महीनों तक रहा. याद होगा आपको जब वित्त मंत्री ने अर्थव्यवस्था में कोरोना की वजह से नुकसान को ‘एक्ट ऑफ गॉड’ बताया था. इसीलिए पिछले साल जो अनुमान लगाए गए थे उनके मुताबिक कुछ नहीं हुआ. जितनी राजस्व आय की उम्मीद थी उतनी नहीं हुई, सरकारी घाटा बढ़ गया, अनुमान के मुताबिक इंवेस्टमेंट नहीं हुआ. पहली दो तिमाही के आंकड़े माइनस में रहे हैं और पूरे साल ही ग्रोथ रेट माइनस में रहने का अनुमान है.
National Statistical Office के मुताबिक वित्त वर्ष 2020-21 की चारों तिमाही को मिलाकर अर्थव्यवस्था में 7.7 फीसदी का कॉन्ट्रैक्शन रहेगा यानी संकुचन रहेगा. संकुचन का मतलब ये कि 2019-20 में जो जीडीपी थी, 2020-21 की जीडीपी उससे 7.7 फीसदी कम रहेगी. जीडीपी आप जानते ही हैं – देश में सभी उत्पादों और सेवाओं को मिलाकर बनने वाला आंकड़ा. एक तरह से पूरे देश का सैलरी अकाउंट. वित्त वर्ष 2020-2021 में कृषि सेक्टर में 3.2 फीसदी की ग्रोथ का अनुमान है. माइनिंग सेक्टर माइनस 12.4 फीसदी रहेगा. मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर माइनस 9.4 फीसदी रहने का अनुमान है. कंस्ट्रक्शन सेक्टर माइनस 12.6 फीसदी रह सकता है.
इनके अलावा भी अर्थव्यवस्था के कई और इंडिकेटर्स होते हैं- जैसे बेरोज़गारी दर. कोरोना की वजह से नौकरियां गईं, लाखों लोगों का रोज़गार छिन गया. जब पिछला दशक शुरू हुआ था तो देश में बेरोज़गारी दर करीब 2 फीसदी थी. अभी देश में करीब 9 फीसदी बेरोज़गारी दर है. तो आर्थिक सर्वे में इस हालत से बाहर निकलने पर फोकस हो सकता है. 2019 में सरकार ने अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन डॉलर तक ले जाने का लक्ष्य रखा था, लेकिन अभी चुनौती ये है कि नकारात्मक ग्रोथ से अर्थव्यवस्था को वापस ट्रैक पर लाया जाए. आर्थिक सर्वे और बजट में सरकार की ये ही कोशिश दिखने का अनुमान है. आर्थिक सर्वे पेश होने के बाद फिर हम आंकड़ों पर बात करेंगे.
गूगल ने धमकी दी है कि अगर न्यूज़ पब्लिशर्स के साथ उसके रिश्तों को तय करने वाले नए क़ानूनों पर ऑस्ट्रेलियाई सरकार आगे बढ़ती है तो वह वहां के बाज़ार को छोड़कर चली जाएगी.
ऐसे में लोग यह जानना चाहते हैं आखिर यह पूरा मसला क्या है?
गूगल ऑस्ट्रेलिया को क्यों छोड़ना चाहती है?
सरकार एक नया क़ानून ला रही है जिसमें लंबे वक्त से उठ रहे इस मसले को हल करने की कोशिश की गई है कि क्या टेक्नोलॉजी सेक्टर की दिग्गज कंपनियों को सर्च रिजल्ट या उनके प्लेटफॉर्म्स पर साझा की जाने वाली ख़बरों के लिए पैसे चुकाने चाहिए या नहीं?
प्रस्तावित कानून में यह अनिवार्य कर दिया गया है कि गूगल का सभी न्यूज़ ऑर्गेनाइजेशंस के साथ एक कर्मशियल एग्रीमेंट हो या फिर उसे जबरदस्ती इस तरह के आर्बिट्रेशन में दाखिल किया जाए. गूगल का कहना है कि यह चीज लागू किए जाने योग्य नहीं है.
सीधे तौर पर कहा जाए तो गूगल को अपने सर्च पर दिखने वाली ख़बरों के लिए न्यूज ऑर्गनाइजेशंस को पैसे चुकाने होंगे.
गूगल के रीजनल डायरेक्टर मेल सिल्वा के मुताबिक, “अगर इन प्रस्तावों को क़ानून बनाया गया तो हमारे पास ऑस्ट्रेलिया में गूगल सर्च को बंद करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचेगा.”
ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने गूगल की प्रतिक्रिया पर कहा है, “हम धमकियों पर टिप्पणी नहीं करते.”
ऑस्ट्रेलिया गूगल से किस चीज़ के लिए पैसे चुकाने को कह रहा है?
अभी तक यह तय नहीं है कि इस मसले के पीछे कितने पैसों का सवाल है.
प्रस्तावित क़ानून में सौदेबाजी और आर्बिट्रेशन का जिक्र है. इस तरह से इसमें गुंजाइश का विकल्प है. अगर गूगल किसी न्यूज संस्थान के साथ एग्रीमेंट नहीं कर पाती है तो कोई जज एक उचित सौदे को तय करेगा.
लेकिन, सरकार का कहना है कि वह चाहती है कि न्यूज संस्थानों को एक उचित भुगतान मिले.
पिछले 15 वर्षों में ऑस्ट्रेलिया में प्रिंट संस्थानों की विज्ञापन से होने वाली कमाई तीन-चौथाई से ज्यादा घटी है.
इसके उलट, इतने ही वक्त में गूगल और फेसबुक जैसे बड़े प्लेटफॉर्म्स की डिजिटल एडवर्टाइजिंग में भारी इजाफा हुआ है.
क्या विकल्प मौजूद हैं?
बाकी की दुनिया की तरह से ही ऑस्ट्रेलिया के सर्च इंजन मार्केट में भी गूगल की हिस्सेदारी करीब 90-95 फ़ीसद है.
सर्च के लिए माइक्रोसॉफ्ट बिंग और याहू के विकल्प भी मौजूद हैं. इसके अलावा, प्राइवेसी पर फोकस करने वाले डकडकगो जैसे सर्च इंजन भी मार्केट में हैं.
हालांकि, साइट एनालिसिस करने वाली कंपनी एलेक्सा की रैंकिंग में गूगल इंटरनेट पर सबसे ज्यादा विजिट की जाने वाली साइट है. याहू इस कतार में 11वें नंबर पर और बिंग 33वें पायदान पर है.
गूगल के जाने से लोगों पर वाकई कोई फर्क पड़ेगा?
2019 में वायर्ड मैगजीन के लिए एक लेखक ने तीन महीने केवल बिंग का इस्तेमाल करके देखा. इस लेखक का निष्कर्ष यह था कि तकरीबन हर बार बिंग ने अच्छा काम किया.
लेकिन, बेहद खास मामलों में, मसलन, पुराने आर्टिकल्स ढूंढने में उसे दिक्कत हुई क्योंकि गूगल का इस्तेमाल करके सर्च करने की जो तकनीक उन्होंने सीखी थी, वह बिंग पर कारगर साबित नहीं हुई.
गूगल महज एक सर्च इंजन नहीं है- इसकी सर्च टेक्नोलॉजी जीमेल, गूगल मैप्स और यूट्यूब समेत कई तरह की सर्विसेज भी देती है.
फिलहाल यह नहीं कहा जा सकता कि अगर गूगल ऑस्ट्रेलियाई बाजार से निकल जाती है तो इसका लोगों पर क्या असर पड़ेगा.
इसके विकल्प जरूर मौजूद हैं, लेकिन इनका बेहद कम इस्तेमाल होता है और बड़े पैमाने पर लोग गूगल ऐप्स को जरूरी समझते हैं.
अमेरिकी रेगुलेटर्स के साथ रस्साकसी के बीच जब ख्वावे फोनों पर गूगल सर्विसेज मिलनी बंद हो गईं तो ख्वावे के लिए पश्चिमी देशों में अपने फोन्स बेचने में खासी दिक्कत होने लगी थी.
क्या यह कानून पूरी दुनिया में एक मिसाल बनेगा?
ऑस्ट्रेलियाई सीनेटर रेक्स पैट्रिक ने गूगल से कहा, “ऐसा पूरी दुनिया में होने वाला है. क्या आप सभी बाज़ारों से निकल जाएंगे?”
लेकिन, गूगल और इस कानून से प्रभावित होने वाली फेसबुक जैसी कंपनियां अमरीका में स्थित हैं.
और अमेरिकी सरकार – कम से कम इसके पिछले ट्रंप प्रशासन- ने ऑस्ट्रेलिया से अनुरोध किया है कि वे नए क़ानून लाने में जल्दबाजी न करें. उन्होंने चेताया है कि यह असाधारण है और इसके दूरगामी नकारात्मक परिणाम हो सकते हैं.
हालांकि, इस तरह का अभी तक कोई उदाहरण नहीं है जबकि स्थानीय कानूनों के चलते गूगल ने किसी देश को छोड़ा हो.
कथित चीनी हैकिंग के 2010 के विवाद के बाद से गूगल बड़े तौर पर मेनलैंड चीन में उपलब्ध नहीं है. तब इसने चीनी यूजर्स के लिए सर्च रिजल्ट्स को सेंसर करना बंद कर दिया था.
इससे थोड़ा सा अलग विवाद यूरोप में भी चल रहा है.
कॉपीराइट को लेकर यूरोपीय यूनियन का एक नया विवादित नियम कहता है कि सर्च इंजनों और न्यूज़ एग्रीगेटरों को लिंक्स के लिए न्यूज़ साइट्स को पैसे देने चाहिए.
फ्रांस में इस हफ्ते पब्लिशर्स ने इसे लागू करने के तरीकों पर गूगल के साथ एक डील पर सहमति जताई है.
लेकिन, इस तरह की चुनिंदा डील्स ही हो पाई हैं. और इस तरह से यह ऑस्ट्रेलिया के व्यापक पैमाने पर और ज्यादा सख्ती वाले कानूनों से काफी अलग है.
गूगल के लिए ऑस्ट्रेलिया कितना अहम है?
चीन के मुकाबले ऑस्ट्रेलिया कहीं कम संभावनाओं वाला मार्केट है.
गूगल ऑस्ट्रेलिया ने 2019 में 3.7 अरब डॉलर का रेवेन्यू हासिल किया था. इसका ज्यादातर हिस्सा विज्ञापनों से होने वाली कमाई थी. लेकिन, सारे खर्च निकालकर भी गूगल ऑस्ट्रेलिया को 2019 में 13.4 करोड़ ऑस्ट्रेलियाई डॉलर का मुनाफा हुआ था.
गूगल की पेरेंट कंपनी अल्फाबेट के पास 100 अरब डॉलर से ज्यादा की पूंजी है जिसके जरिए वह आमदनी में होने वाली किसी भी कमी की भरपाई कर सकती है.
लेकिन, मसला पैसे का नहीं है.
बड़ा मसला यह है कि क्या गूगल चाहती है कि एक आधुनिक पश्चिमी देश यह करके दिखाए कि कैसे गूगल के बिना उसके प्रतिस्पर्धियों के सहारे काम चलाया जा सकता है.
क्या ऑस्ट्रेलियाई लोग यूएस गूगल का इस्तेमाल नहीं कर सकते?
यह मुमकिन है कि गूगल ऑस्ट्रेलियाई लोगों को यूएस या किसी अन्य देश के गूगल के वर्जन पर भेज दे.
इससे लोकलाइज्ड सर्च रिजल्ट्स मिलने बंद हो सकते हैं, लेकिन गूगल की सर्विसेज चलती रहेंगी.
लेकिन, गूगल भौगोलिक लोकेशन (आईपी एड्रेस के जरिए) के आधार पर ऑस्ट्रेलियाई यूजर्स को ब्लॉक भी कर सकती है.
इसका एक आसान तरीका वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क या वीपीएन का इस्तेमाल हो सकता है. इसके जरिए यह लगेगा कि आपका कंप्यूटर कहीं और है. कई दफा तकनीकी जानकार दूसरे देशों में स्ट्रीमिंग सर्विसेज हासिल करने के लिए ऐसा करते हैं.
लेकिन, यह स्लो होती है और अच्छे प्रोवाइडर्स इसके लिए सब्सक्रिप्शन मांगते हैं. यह एक ऐसी दिक्कत है जिसमें एक मामूली का सर्च रिजल्ट हासिल करने के लिए कोई उलझना नहीं चाहेगा.
क्या पब्लिशर्स को इससे वाकई में फायदा होगा?
ऑस्ट्रेलिया में एक समृद्ध न्यूज इंडस्ट्री रही है. मीडिया मुगल रूपर्ट मर्डोक यहीं पैदा हुए थे.
मर्डोक के न्यूज कॉर्प को इससे फायदा होगा. इसके अलावा, एबीसी न्यूज़ को भी फायदा होगा.
2014 से ही एबीसी की फंडिंग में करोड़ों डॉलरों की कटौती हुई है और इसके चलते इसे अपनी सेवाओं को कम करना पड़ा है.
स्थानीय अखबारों को भी विज्ञापन घटने से नुकसान हुआ है.
125 से ज्यादा न्यूज कॉर्प के मालिकाना हक वाले स्थानीय अख़बारों ने इस साल की शुरुआत में पूरी तरह से ऑनलाइन होने का फैसला किया है. इससे सैकड़ों की तदाद में नौकरियां खत्म हो रही हैं.
जहां कोरोना महामारी के दौर में कई लोगों के कारोबार घाटे में चले गए वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें ये महामारी पहले से भी ज़्यादा अमीर बना गई.
ये साल कई लोगों के लिए मुश्किलों भरा रहा है.
दुनिया भर में कोरोना के कारण 16 लाख लोगों की मौत हो चुकी है और आर्थिक संकट के चलते कई कारोबार बंद हो गए और लाखों नौकरियां चली गईं.
लेकिन, कई अमीरों के लिए हालात इतने बुरे भी नहीं रहे हैं.
दुनिया के 60 प्रतिशत से ज़्यादा अरबपति साल 2020 में और अमीर हो गए हैं और इनमें से पांच वो लोग हैं जिनकी कुल दौलत 310.5 अरब डॉलर हो गई है. आपको बताते हैं कि ये लोग कौन हैं-
एलन मस्क, टेस्ला के सह-संस्थापक और सीईओ
स्पेस एक्स के संस्थापक और टेस्ला के सीईओ एलन मस्क की संपत्ति में साल 2020 में 140 अरब डॉलर और जुड़ गए हैं. ब्लूमबर्ग के मुताबिक पिछले सोमवार को उनकी कुल संपत्ति 167,000 मिलियन डॉलर (1 खरब 67 अरब डॉलर) तक पहुंच गई है.
इसके साथ ही एलन मस्क अरबतियों की सूची में कई पायदान ऊपर चढ़ गए हैं और नवंबर में बिल गेट्स को पीछे छोड़ दूसरे स्थान पर आ गए हैं. उनसे ऊपर पहले पायदान पर अमेज़न के संस्थापक जेफ़ बेज़ोस का नाम है.
फोर्ब्स के मुताबिक जब से पत्रिका ने दुनिया के अमीर लोगों की सूची बनानी शुरू की है तब से लेकर अब तक किसी अरबपति की एक साल में की गई ये सबसे ज़्यादा कमाई है.
एलन मस्क की कंपनी टेस्ला एक इलैक्ट्रिक कार निर्माता कंपनी है. इस साल कंपनी में कारों की रिकॉर्ड बिक्री हुई है. वहीं, मस्क की दूसरी कंपनी स्पेस एक्स ने भी इस साल तरक्की की है और वो अंतरिक्ष में एस्ट्रोनॉट लॉन्च करने वाली पहली निजी कंपनी बनी है.
जेफ़ बेज़ोस, अमेज़न के संस्थापक और सीईओ
जेफ़ बेज़ोस वो शख़्सियत हैं जिन्होंने साल 2020 की शुरुआत दुनिया के सबसे अमीर शख़्स बनकर की थी और उसका अंत भी इसी तरह किया है.
जेफ़ बेज़ोस सिर्फ़ ऑनलाइन शॉपिंग प्लेटफॉर्म अमेज़न के संस्थापक ही नहीं है बल्कि इसके अलावा वो अमेरिकी अख़बार ‘द वॉशिगटन पोस्ट’ के मालिक भी है.
उन्होंने इस साल अपनी संपत्ति में 72 अरब डॉलर और जोड़े हैं. इसकी वजह है कोरोना महामारी के दौरान ऑनलाइन खरीदारी का बढ़ना. लॉकडाउन में दुकाने बंद होने के कारण लोगों ने बढ़-चढ़कर ऑनलाइन खरीदारी की है.
कुछ महीनों पहले जेफ़ बेज़ोस की कुल संपत्ति 200 अरब डॉलर का आंकड़ा पार कर गई थी. हालांकि, फिलहाल उनकी संपत्ति 187 अरब डॉलर है.
जेफ़ बेज़ोस सामाजिक कार्यों में भी अपना योगदान देते रहते हैं. फरवरी में उन्होंने 10 अरब डॉलर जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए दान दिए थे. नवंबर में 80 करोड़ डॉलर उन्होंने पर्यावरण पर काम करने वालीं संस्थाओं को दिए थे.
उनकी पूर्व पत्नी मैकेंज़ी स्कॉट ने इस साल कम से कम 5.8 अरब डॉलर गैर-सरकारी संस्थाओं को दान किए थे.
ज़ोंग शनशन, नों फू स्प्रिंग के संस्थापक
ब्लूमबर्ग के मुताबिक ज़ोंग शनशन की कुल संपत्ति 62.6 अरब डॉलर तक बढ़ गई है (मौजूदा 69 डॉलर).
जोंग सितंबर में चीन के सबसे ज़्यादा अमीर शख़्स बन गए थे. उनकी बोतलबंद पानी की कंपनी नों फू स्प्रिंग ने शेयर की सार्वजनिक बिक्री शुरू करने के बाद 1.1 अरब डॉलर से ज़्यादा की कमाई की थी.
नों फू स्प्रिंग की स्थापना 1996 में हुई थी जो एशिया में बोतलबंद पानी के बाज़ार के पांचवे हिस्से को नियंत्रित करती है. उनकी कंपनी का मूल्य 70 अरब डॉलर है.
66 साल के ज़ोंग कंपनी के 84 प्रतिशत से अधिक हिस्से के मालिक हैं, जिसकी शेयर वैल्यू लगभग 60 अरब डॉलर है.
इसके कारण ज़ोंग शनशन टेनसेंट्स के पोनी मा और अलीबाब के जैक मा जैसे अरबपतियों से आगे निकल गए हैं. वो हाल के महीनों में चीन के सबसे अमीर आदमी बन गए हैं. वह वैक्सीन निर्माता बीजिंग वॉन्टा बायोलॉजिकल फार्मेसी का स्वामित्व रखते हैं.
ये कंपनी कोविड-19 के लिए नाक से लिया जाने वाला स्प्रे बना रही है जो नवंबर में दूसरे फेज़ का ट्रायल कर रही थी.
बर्नार्ड आरनॉल्ट, एलवीएमएच ग्रुप के मालिक
फ्रांस के बर्नार्ड आरनॉल्ट अपने देश के सबसे अमीर व्यक्ति हैं और फोर्ब्स ने उन्हें अमीर लोगों की सूची में दूसरे नंबर पर रखा था. ब्लूमबर्ग ने उन्हें रैंकिंग में चौथे नंबर पर रखा था.
लग्ज़री सामानों की कंपनी एलवीएमएच के मालिक आरनॉल्ट की कुल संपत्ति इस साल के अंत तक 146.3 अरब डॉलर हो गई है. उनके लिए ये मुश्किल साल होने के बावजूद भी साल 2020 में आरनॉल्ट की संपत्ति 30 प्रतिशत तक बढ़ी है.
कोरोना महामारी के कारण एलवीएमएच ने टिफनी एंड कंपनी का अधिग्रहण करने की योजना अस्थायी तौर पर रोक दी थी. लेकिन, अक्टूबर में उन्होंने 15.8 अरब डॉलर में कंपनी के अधिग्रहण का समझौता किया जो कि इसके मूल प्रस्ताव से 40 करोड़ डॉलर कम है.
लग्ज़री उत्पादों की बिक्री में लगातार कमी आ रही है लेकिन एलवीएमएच ने इस मामले में सबको हैरान किया है. दक्षिण कोरिया और चीन में उनके कुछ उत्पादों की बढ़े स्तर पर बिक्री हुई है.
डैन गिलबर्ट, रॉकेट कंपनीज़ के अध्यक्ष
58 साल के गिलबर्ट एनबीए क्लीवलैंड कैवेलियर्स के मालिक हैं और ऑनलाइन मॉर्टेज कंपनी क्विकन लोन्स के सह-संस्थापक हैं. ब्लूमबर्ग के आंकड़ों के मुताबिक 2020 में उनकी कुल संपत्ति 28.1 अरब डॉलर तक बढ़ गई है. अब उनकी कुल संपत्ति 35.3 अरब डॉलर है.
इसकी वजह ये है कि क्विकन लोन्स की मूल कंपनी रॉकेट कंपनीज़ ने अगस्त में शेयर और अन्य वित्तीय साधनों की सार्वजनिक बिक्री शुरू की थी. गिलबर्ट के पास रॉकटे कंपनीज़ का 80 प्रतिशत से ज़्यादा मालिकाना हक है जिसका कुल मूल्य 31 अरब डॉलर से ज़्यादा है.
गिलबर्ट की कुल संपत्ति एक साल में छह गुना बढ़ी है जिसकी वजह है क्विकन लोंस का आईपीओ.
कोरोना महामारी के बीच अब भारत के कई राज्यों में बर्ड फ्लू (Bird Flu) के मामले बढ़ते जा रहे हैं. राजस्थान, मध्य प्रदेश, झारखंड, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में इस वायरस को लेकर अलर्ट (Bird flu outbreak) जारी कर दिया गया है. पोल्ट्री फार्म, जलाशयों और प्रवासी पक्षियों पर विशेष निगरानी रखने को कहा गया है. साथ ही संक्रमण फैलने वाली जगहों पर मांस बेचने पर भी प्रतिबंध लगाया जा रहा है.
दिसंबर 2020 में जापान, साउथ कोरिया, वियतनाम और चार यूरोपीय देशों में बर्ड फ्लू के मामले आने शुरू हुए थे और अब ये भारत के कई हिस्सों में फैल चुका है. आइए जानते हैं कि आखिर बर्ड फ्लू होता क्या है और ये कैसे फैलता है?
क्या होता है बर्ड फ्लू-
बर्ड फ्लू एक वायरल इंफेक्शन है जिसे एवियन इन्फ्लूएंजा (Avian Influenza) भी कहते हैं. ये एक पक्षी से दूसरे पक्षियों में फैलता है. बर्ड फ्लू का सबसे जानलेवा स्ट्रेन H5N1 होता है. H5N1 वायरस से संक्रमित पक्षियों की मौत भी हो सकती है. ये वायरस संक्रमित पक्षियों से अन्य जानवरों और इंसानों में भी फैल सकता है और इनमें भी ये वायरस इतना ही खतरनाक है.
इंसानों में बर्ड फ्लू का पहला मामला 1997 में हॉन्ग कॉन्ग में आया था. उस समय इसके प्रकोप की वजह पोल्ट्री फार्म में संक्रमित मुर्गियों को बताया गया था. 1997 में बर्ड फ्लू से संक्रमित लगभग 60 फीसदी लोगों की मौत हो गई थी. ये बीमारी संक्रमित पक्षी के मल, नाक के स्राव, मुंह की लार या आंखों से निकलने वाली पानी के संपर्क में आने से होती है.
H5N1 बर्ड फ्लू इंसानों में होने वाले आम फ्लू की तरह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में आसानी से नहीं फैलता है. एक इंसान से दूसरे इंसान में तभी फैलता है जब दोनों के बीच बहुत करीबी संपर्क हो. जैसे कि संक्रमित बच्चे की देखभाल करने वाली मां या घर के किसी अन्य संक्रमित सदस्य का ख्याल रखने वाले लोग.
किन पक्षियों में होता है बर्ड फ्लू-
बर्ड फ्लू प्रवासी जलीय पक्षियों खासतौर से जंगली बतख से प्राकृतिक रूप से फैलता है. इन जंगली पक्षियों से ये वायरस घरेलू मुर्गियों में फैल जाता है. जंगली पक्षियों से ये बीमारी सूअरों और गधों तक भी फैल जाती है. साल 2011 तक ये बीमारी बांग्लादेश, चीन, मिस्र, भारत, इंडोनेशिया और वियतनाम में फैल चुकी थी.
इंसानों में कैसे फैलता है बर्ड फ्लू-
बर्ड फ्लू इंसानों में तभी फैलता है जब वो किसी संक्रमित पक्षी के संपर्क में आए हों. ये करीबी संपर्क कई मामलों में अलग-अलग हो सकता है. कुछ लोगों में ये संक्रमित पक्षियों की साफ-सफाई से फैल सकता है. कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक, चीन में ये पक्षियों के बाजार से फैला था.
संक्रमित पक्षियों से दूषित पानी में तैरने-नहाने या मुर्गों और पक्षियों की लड़ाई छुड़वाने वाले लोगों में भी बर्ड फ्लू का संक्रमण हो सकता है. इसके अलावा संक्रमित जगहों पर जाने वाले, कच्चा या अधपका मुर्गा-अंडा खाने वाले लोगों में भी बर्ड फ्लू फैलने का खतरा होता है. H5N1 में लंबे समय तक जीवित रहने की क्षमता होती है. संक्रमित पक्षियों के मल और लार में ये वायरस 10 दिनों तक जिंदा रहता है.
बर्ड फ्लू के लक्षण-
बर्ड फ्लू होने पर आपको कफ, डायरिया, बुखार, सांस से जुड़ी दिक्कत, सिर दर्द, मांसपेशियों में दर्द, गले में खराश, नाक बहना और बेचैनी जैसी समस्या हो सकती है. अगर आपको लगता है कि आप बर्ड फ्लू की चपेट में आ गए हैं तो किसी और के संपर्क में आने से पहले डॉक्टर को दिखाएं.
क्या है इलाज-
अलग-अलग तरह के बर्ड फ्लू का अलग-अलग तरीकों से इलाज किया जाता है लेकिन ज्यादातर मामलों में एंटीवायरल दवाओं से इसका इलाज किया जाता है. लक्षण दिखने के 48 घंटों के भीतर इसकी दवाएं लेनी जरूरी होती हैं. बर्ड फ्लू से संक्रमित व्यक्ति के अलावा, उसके संपर्क में आए घर के अन्य सदस्यों को भी ये दवाएं ली जाने की सलाह दी जाती है, भले ही उन लोगों में बीमारी के लक्षण ना हों.
कावेरी राणा भारद्वाज ने अपने पालतू कुत्ते को खोने के बाद इससे उबरते हुए ग्रेटर नोएडा में एक पशु आश्रय खोला। वह सोफी मेमोरियल एनिमल रिलीफ ट्रस्ट चलाती है, जो विकलांग जानवरों, विशेष रूप से कुत्तों को बचाता है और उनका इलाज करता है।
वे कहते हैं कि कुत्ते एक आदमी के सबसे अच्छे दोस्त हैं, लेकिन ‘सोफी’ कावेरी राणा भारद्वाज के लिए सिर्फ एक दोस्त से कई अधिक थी; वह लाइफ लाइन थी।
पहला कुत्ता जिसे उन्होंने बचाया, सोफी ने कावेरी के दिल में एक विशेष स्थान रखा। और जब 12 साल की उम्र में उनके पालतू कुत्ते का निधन हो गया, तो वह हतप्रभ थी।
कावेरी ने YourStory के साथ बात करते हुए बताया, “वह मेरी पहली पालतू बेटी थी और हमने उसे खो दिया, ज्यादा उम्र नहीं थी, लेकिन एक बीमारी के लिए के कारण उसकी मौत हो गयी, जब वह सिर्फ 12 साल की थी। मैं उसके नुकसान का सामना नहीं कर सकी, और केवल एक चीज जो उसकी कमी को पूरा कर सकती थी, वह थी कुछ सार्थक करना। मैंने पाया कि असहाय और विकलांग कुत्तों को बचाने में इसका मतलब है।“
भले ही बचाव कावेरी की अनुसूची का एक हिस्सा थे, लेकिन सोफी के 2017 में गुजर जाने तक यह पूर्णकालिक नौकरी नहीं थी।
उसके बाद, उन्होंने अपने पति यशराज भारद्वाज के साथ सोफी मेमोरियल एनिमल रिलीफ ट्रस्ट की सह-स्थापना की। ग्रेटर नोएडा में कोई पशु आश्रय नहीं थे, जब दंपति ने शहर में पहला पशु आश्रय, स्मार्ट अभयारण्य (SMART Sanctuary) खोला।
उन्हें अक्सर नोएडा के ‘डॉग मदर’ के रूप में जाना जाता है। कावेरी कुत्तों के साथ एक बहुत ही विशेष बंधन साझा करती है, और अक्सर उन्हें अपने “बच्चों” के रूप में संदर्भित करती है। वह अब अपने समय का एक बड़ा हिस्सा बचाती है।
जब उनसे पूछा गया कि वह अपने समय की योजना कैसे बना रही हैं, तो वे कहती हैं, “मैं नहीं करती। मैं जो काम करती हूं वह काफी अप्रत्याशित है और आपको नहीं पता होता कि किस बच्चे को मदद की जरूरत हो।” वास्तव में, कावेरी अपने रहने वाले कमरे में 12 पिल्लों के साथ रहती है, इसलिए नियमित नींद चक्र उनके पति और उनके लिए सवाल से बाहर हैं।
इसलिए, एक मोटे, गर्भवती कुत्ते को बचाने के तुरंत बाद, जो जन्म देने के लिए बहुत अस्वस्थ था, कावेरी ने YourStory से बात की, जो अब तक विश्वास और रोमांच के साथ उनकी यात्रा के बारे में बता रही थी।
विकलांग कुत्तों की मदद करना
जानवरों को अपना समय समर्पित करने का विकल्प चुनने के बाद, कावेरी कहती है कि वह अपने पति के समर्थन के कारण मजबूत है। एक फ्रीलांस डिजिटल मार्केटिंग प्रोफेशनल, वह खुद अपने ट्रस्ट की एम्बुलेंस चलाती है। वास्तव में, वह इसे स्वयं करने के लिए एक पॉइंट बनाती है क्योंकि वह यह नहीं सोचती कि अन्य स्वयंसेवक समझते हैं कि घायल कुत्ते को विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है।
वह कहती हैं, “अक्सर, जिन कुत्तों की रीढ़ क्षतिग्रस्त हो गई है, उन्हें सोने के लिए रखा जाता है। हालांकि यह कुछ के लिए ‘मानवीय’ तरीका लग सकता है, मैं पूरी तरह से असहमत हूं; मेरा मानना है कि वे जीवन में उचित अवसर के हकदार हैं।”
“भले ही उनमें से कुछ के माध्यम से इसे बनाने के लिए नहीं है, यह वास्तव में उन्हें पुनर्प्राप्त करने और अपने सामान्य जीवन में वापस पाने के लिए बहुत दिल से है।”
कुत्ते की स्थिति के आधार पर, कावेरी और यशराज इस बात का आह्वान करते हैं कि उन्हें अस्पताल में इलाज या प्रवेश की आवश्यकता है या नहीं। अगर कुत्ते का इलाज मौके पर किया जा सकता है, तो वे गाजियाबाद के एक अस्पताल, Canine and Feline Critical Care Unit के सहयोग से करते हैं। अस्पताल उन्हें सर्जरी, उपचार, पोस्ट-ऑप्स, चिकित्सा और अन्य जरूरतों में सहायता करता है।
जबकि उपचार के लिए कुछ पैसा अपनी खुद की जेब से जाता है, दोनों डोनर्स पर भरोसा करते हैं ताकि सर्जरी में मदद की जा सके जिसमें उच्च लागत शामिल है।
“उनके कुछ उपचारों में टाइटेनियम प्लेटों और अन्य महंगे उपकरणों की आवश्यकता होती है, जो अन्यथा प्रबंधित करना कठिन होता है।”
मिलाप में इस तरह के एक सफल अभियान के माध्यम से, कावेरी और यशराज पैसे जुटाने में कामयाब रहे और ग्रेटर नोएडा में 120 कुत्तों के लिए घर बनाने में सक्षम थे, और 500 कुत्तों तक जाने की क्षमता थी। आश्रय गृह, SMART Sanctuary में एक कैनाइन पक्षाघात और पुनर्वास इकाई भी है।
SMART Sanctuary
दोनों के पास किराए पर जमीन का एक टुकड़ा था, जब उन्होंने धन जुटाना शुरू किया। उन्हें जमीन के इस टुकड़े के विकास के लिए बहुत प्रयास करने पड़े, लेकिन तब मिलाप अभियान हुआ।
“अभयारण्य में विभिन्न प्रकार की बीमारियों और जानवरों के लिए अलग-अलग बाड़े हैं।”
भूमि, लगभग एक एकड़, topsoil से भरी थी। क्वार्टर को शीर्ष गुणवत्ता वाली टाइलों के साथ बनाया गया है क्योंकि “अधिकांश कुत्तों को चोट लगने पर उनमें अंगों को खींचने की प्रवृत्ति होती है। ये टाइलें सुनिश्चित करती हैं कि उन्हें इन अंगों पर घाव न हों ”।
इसके अलावा, अभयारण्य जानवरों को ’पक्के’ और ’कच्चे’ क्षेत्रों तक पहुँच प्रदान करने के लिए बनाया गया है, जो उनकी चिकित्सा में मदद करते हैं।
अभयारण्य के भीतर एक शेड, कुत्तों से दूर, बछड़े, गधे, नीलगाय, और ऊंट जिन्हें एक छापे में जब्त किया गया था। कई विकलांग जानवर, जिनमें बिल्लियाँ और बछड़े शामिल हैं, जो लॉकडाउन के दौरान घायल हो गए थे, उन्हें भी अभयारण्य में रखा गया है।
हालांकि, सबसे आम जानवर जो इस सुरक्षित ठिकाने के लिए अपना रास्ता ढूंढते हैं, वे कुत्ते हैं। वास्तव में, जबकि उन्होंने सैकड़ों कुत्तों का इलाज और मदद की है, उनमें से लगभग 130 अभयारण्य में रहते हैं।
कावेरी कहती हैं, “हम रोज़ाना कई जानवरों को देखते हैं – बिना अंगों वाले कुत्ते, अंधे कुत्ते, बहरे कुत्ते।”
संगठन आस-पास के गाँवों में नसबंदी शिविर और सामूहिक टीकाकरण अभियान भी चलाता है जहाँ कोई पशु चिकित्सालय नहीं हैं। टीम ने सांपों को भी बचाया और उन्हें ग्रेटर नोएडा के जंगलों में छोड़ दिया।
कावेरी कहती है, “सांपों को न मारने के लिए लोगों को समझाने में बहुत काम आया। इसलिए जब हमें फोन आता है, हम आगे बढ़ते हैं और इन सांपों को छुड़ाते हैं। वास्तव में, ‘सपेरे’ (सांप पकड़ने वाले) मुझसे मुफ्त में ऐसा करने के लिए नफरत करते हैं।”
कावेरी मेनका गांधी और पीपल फॉर एनिमल्स (पीएफए) के साथ भी काम करती हैं और गौतम बौद्ध नगर शाखा की प्रमुख हैं।
हालांकि, भले ही चीजें सुचारू रूप से चल रही हों और टीम जानवरों के लिए काम करती हो, लेकिन सड़क हमेशा से ही खस्ताहाल रही है। अपर्याप्त पशु चिकित्सा देखभाल, धन, नफरत – ये कावेरी की यात्रा में कुछ सबसे बड़ी बाधाएं थीं।
वह कहती हैं, “जबकि कुछ लोग आप जो करते हैं, इसकी सराहना करते हैं, कई आपसे नफरत करते हैं। उनके लिए, आप सिर्फ एक कुत्तेवाली (डॉग लेडी) हैं। जब हम उन कुत्तों को बचाते हैं जो घायल हो जाते हैं, तो उनके लिए यह स्वाभाविक है कि वे अपनी पीड़ा के कारण कोड़े मारते और भौंकते रहें, अक्सर हंगामा खड़ा हो जाता है। यह अक्सर बहुत से पड़ोसियों और RWA को ट्रिगर करता है, जो अक्सर हमारे साथ लड़ाई करते हैं।”
“लेकिन जब लोग आपके द्वारा किए जा रहे अच्छे काम को देखते हैं, तो चुनौतियां दूर हो जाती हैं। यह हर दिन हमारे सामने आने वाली चुनौतियों से कहीं अधिक फायदेमंद है। ”
महामारी का प्रभाव
अभयारण्य में, टीम जानवरों के लिए एक संतुलित आहार, सूखा और पकाया हुआ भोजन प्रदान करती है। लेकिन जब लॉकडाउन हुआ, दान कम हो गया, प्रसव हुआ, और सूखा भोजन स्टॉक से बाहर हो गया।
टीम में 10 स्थायी सदस्य और स्वयंसेवक हैं जो समय-समय पर मदद करते हैं। हालांकि, महामारी के कारण स्वयंसेवकों की कमी हो गई। कुत्तों के नॉवेल कोरोनावायरस रोग के वाहक होने के बारे में अफवाहों ने भी गोद लेने की दर को प्रभावित किया।
लेकिन चीजें तब बदल गईं जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मन की बात कार्यक्रम में प्रगति को अपनाने की बात कही।
कावेरी कहती हैं, “लॉकडाउन के दौरान एक अच्छी बात यह रही कि विकलांगों की संख्या में भारी गिरावट आई। लेकिन लॉकडाउन हटने के बाद यह बदल गया।”
आगे का रास्ता
चूंकि पिल्लों को बड़े कुत्तों के साथ समायोजित नहीं किया जा सकता है, कावेरी और टीम सोफी मेमोरियल 2021 से पहले पिल्लों के लिए एक पुनर्वास इकाई खोल रहे हैं। “रीढ़ और मस्तिष्क की चोटों के साथ पिल्ले को पुनर्वास और चिकित्सा के लिए भर्ती कराया जा सकता है,” वह कहती हैं।
मिलाप पर क्राउडफंडिंग अभियान अभी भी जारी है; यह विचार है कि सभी पशुओं के लिए मुफ्त उपचार प्रदान करने के लिए एक नि: शुल्क पशु चिकित्सालय स्थापित किया जाए।
अपने जीवन के मिशन के बारे में बात करते हुए, कावेरी कहती है: “मुझसे ज्यादा निस्वार्थ होने के कारण, इन बच्चों ने सोफी के गुजर जाने के बाद मुझे वापस जीवन में ला दिया। जब आप उन्हें बचाते हैं, तो वे बदले में आपको बचाते हैं।”
साल 2020 ने सिर्फ लोगों के ज़हन पर ही नहीं बल्कि वैश्विक राजनीति पर भी गहरी छाप छोड़ी है.
कोरोना वायरस महामारी ने ना सिर्फ बड़े पैमाने पर आर्थिक संकट पैदा किया बल्कि वैश्विक मतभेदों और प्रतिस्पर्धाओं को भी और गहरा किया. इसका अमेरिका और चीन के रिश्तों पर भी गहरा असर रहा है.
साल 2020 में नागार्नो-काराबाख जैसे कुछ प्राचीन विवाद भी फिर उभर आए.
भारत और चीन की सीमा पर पैंतालीस सालों में सबसे भीषण तनाव भी हुआ.
लेकिन ऐसा नहीं है कि सिर्फ टकराव ही हुए हों. कुछ देश करीब भी आए और लंबे समय तक असर रखने वाले ऐतिहासिक समझौते भी हुए.
1. अमेरिका का तालिबान के साथ समझौता
अफ़ग़ानिस्तान पर अमेरिका के आक्रमण के 18 साल बाद राष्ट्रपति ट्रंप उसी तालिबान से समझौता करने में कामयाब रहे जिसकी सरकार को अमेरिका ने उखाड़ दिया था. अफ़ग़ानिस्तान से अमेरीकी सैनिकों को वापस लाना ट्रंप के साल 2016 के चुनावी वादों में शामिल था.
अफ़ग़ानिस्तान-अमेरिका युद्ध की मानवीय क़ीमत भी बहुत भारी रही है. अनुमान के मुताबिक 157000 से अधिक लोग मारे गए हैं जिनमें 43 हज़ार से अधिक आम नागरिक हैं. अब 25 लाख अफ़ग़ान नागरिक शरणार्थी भी बन गए हैं.
अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने भी भारी क़ीमत चुकाई है. अमेरिका के 2400 से अधिक सैनिक मारे गए जबकि नेटो सहयोगियों के 1100 से अधिक सैनिकों ने अफ़ग़ानिस्तान में जान गंवाई. अनुमान के मुताबिक अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान युद्ध पर दो अरब डॉलर से अधिक ख़र्च किए हैं.
साल 2020 में अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी सेना को वापस बुलाने के लिए अमेरिका और तालिबान के बीच अहम समझौता हुआ. अमेरिकी सैनिकों की वापसी के अलावा इस समझौते के तहत तालिबान और अफ़ग़ान सरकार के बीच भी वार्ता होनी है.
विश्लेषकों के मुताबिक तालिबान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप की ओर से दिए जा रहे संकेतों को पढ़ने में कामयाब रहा और मौके को भुना लिया.
साल 2016 से 2018 तक पेंटागन में अफ़ग़ानिस्तान मामलों को निदेशक रहे जेसन कैंपबेल को इस समझौते की कामयाबी पर शक है हालांकि वो मानते हैं कि आज का तालिबान पहले के मुकाबले अधिक व्यवहारिक है.
कैंपबेल के मुताबिक आज का तालिबान पश्चिमी देशों और अमेरिका के साथ अच्छे रिश्ते चाहता है ख़ासकर व्यापार और विकास के मामलों में. वो कहते हैं, ‘वो 1990 के दौर में वापस नहीं लौटना चाहते हैं जब वो एक नाकाम राष्ट्र थे.’
2. इसराइल का बहरीन और संयुक्त अरब अमीरात के साथ रिश्ते बनाना
अगस्त और सितंबर 2020 के बीच संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन ने इसराइल के साथ रिश्ते सामान्य करने की घोषणा की. ये पहले अरब देश हैं जिन्होंने पिछले 25 सालों में यहूदी देश इसराइल के साथ रिश्तों को मान्यता दी है.
इससे पहले मिस्र ने 1979 में और जोर्डन ने 1994 में इसराइल को मान्यता दी थी. इन समझौतों को मध्य पूर्व में इसराइल की बदलती भूमिका के तौर पर भी देखा जा रहा है. अब इसराइल पहले से अधिक सुरक्षित स्थिति में है.
इसराइल और मध्य पूर्व के दो देशों के बीच हुए समझौतों का डोनल्ड ट्रंप ने खुला समर्थन किया. लेकिन इनके पीछे कुछ और भी कारण थे. इनमें से एक है ईरान के प्रति इन देशों का डर.
अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार रियान बोह्ल के मुताबिक अरब देश इसराइल के साथ मिलकर ईरान के खिलाफ़ अनौपचारिक ब्लॉक बना रहे हैं. अगर अमेरिका मध्य पूर्व से बाहर निकलकर एशिया की तरफ़ बढ़ता है तो मध्य पूर्व में इसराइल के अमेरिका की जगह लेने की संभावना है
3. यूरोपीय संघ ने तोड़ी धारणाएं
कोरोना वायरस संक्रमण यूरोपीय संघ के लिए गंभीर परीक्षा रहा है. हालांकि अब ये संकट यूरोपीय संघ को और मज़बूत करने में भी अहम साबित हो सकता है.
जुलाई में चार दिन चली बैठक के बाद यूरोपीय संघ के देश कोरोना संकट से निबटने के लिए 860000 मिलियन डॉलर का फंड बनाने पर तैयार हो गए थे. ये उन सदस्य देशों की मदद के लिए है जिन पर कोरोना संकट का गहरा असर हुआ है.
इसमें से 445000 मिलियन डॉलर मदद के तौर पर बाकी 41000 मिलियन डॉलर कम ब्याज़ दर पर क़र्ज़ के तौर पर दिए जाएंगे. ये पहला कार्यक्रम होगा जिसके तहत यूरोपीय संघ के देश साझा तौर पर क़र्ज़ ले पाएंगे.
विश्लेषकों का मानना है कि ये रिकवरी फंड यूरोपीय संघ के भीतर सहयोग को और मजबूत करेगा.
4. आरसीईपी यानी दुनिया का सबसे बड़ा मुक्त व्यापार समझौता
नवंबर में एशिया-प्रशांत क्षेत्र के 15 देशों ने दुनिया के सबसे बड़े मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए. इसे रीजनल कंप्रीहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप यानी आरसीईपी कहा गया है. इस समझौते में शामिल देशों में दुनिया की एक तिहाई आबादी रहती है.
इसमें दक्षिण एशिया के दस देशों के अलावा चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड भी शामिल हैं. भारत इस आर्थिक समझौते का हिस्सा नहीं है. इस समझौते के यूरोपीय संघ और मेक्सिको-अमेरिका के बीच व्यापार समझौते से भी बड़ा माना जा रहा है.
आरसीईपी को सबसे पहले चीन ने साल 2012 में बढ़ावा दिया था लेकिन इसमें अहम प्रगति पिछले तीन सालों में ही हुई. माना ये भी जा रहा है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप की परोक्ष मदद से ही ये समझौता अंजाम तक पहुंचा है.
साल 2017 में ट्रंप ने अमेरिका को ट्रांस-पेसिफिक पार्टनर्शिप (टीपीपी) से अलग कर लिया था. इस समझौते में शामिल कुछ देश अब आरसीईपी का हिस्सा हैं. माना जा रहा है कि इस आर्थिक समझौते से सबसे ज़्यादा फ़ायदा चीन को ही होगा.
5. ब्रेग्जिट
31 जनवरी 2020 को इतिहास में ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से अलग होने के दिन के तौर पर याद किया जाएगा. जून 2016 में हुए जनमत संग्रह में यूरोपीय संघ से अलग होने के फैसले को अंजाम तक पहुंचाते हुए ब्रिटेन की सरकार ने ब्रेग्जिट को मंज़ूरी दे दी थी.
इस दिन ब्रिटेन और यूरोपीय संघ एक दूसरे को अलग होने के लिए 11 महीने का समय देने के लिए तैयार हुए थे. इस दौरान दोनों पक्षों ने भविष्य में रिश्तों की शर्तों को लेकर वार्ताएं की. ब्रेग्जिट ने 1973 में बनी साझेदारी को तोड़ दिया. तब ब्रिटेन ने यूरोपीय आर्थिक कम्युनिटी से हाथ मिलाया था.
साल 2020 के खत्म होने का इंतज़ार जितनी बेसब्री से दुनिया कर रही है, उतना शायद ही किसी साल के लिए किया होगा. जायज़ भी है. आधे से ज़्यादा साल ऐसा गुज़रा, जब दुनिया की एक बड़ी जनसंख्या घरों में बंद रही. ऐसे में एक बड़े हिस्से ने म्यूजिक और आर्ट में पनाह ढूंढी. ये वो गाने हैं, जिनके संगीत ने तो लोगों को अपना फैन बनाया ही, इनके लिरिक्स भी कविता जैसे दिल में उतर गए. वो कहते हैं न, जब आप खुश होते हैं तो आप संगीत सुनते हैं, लेकिन जब आप उदास होते हैं, तो शब्दों पर ध्यान देते हैं. इस साल के खत्म होते होते चलिए आपको लेकर चलते हैं कुछ ऐसे गानों के सफ़र पर, जिनके बोलों ने सब कुछ थोड़ा आसान, थोड़ा नर्म, थोड़ा मुतमईन कर दिया.
1.शायद
गायक: अरिजीत सिंह
लिरिक्स: इरशाद कामिल
संगीत: प्रीतम
फिल्म ‘लव आजकल 2’ को रिस्पांस चाहे जैसा मिला हो, उसके गानों की लोगों ने तारीफ की. ये गाना भी कुछ ऐसा ही है. फिल्म में ये गाना ऐसे समय पर आता है, जहां कार्तिक और सारा के बीच प्यार का पहला एहसास मुकम्मल होता दिखाई देता है. अरिजीत को वैसे भी आज के ज़माने का कुमार सानू कह देते हैं लोग. क्योंकि लव सांग्स के मामले में अरिजीत का काम लोगों को बहुत पसंद है. प्रीतम पर म्यूजिक कॉपी करने के आरोप लगते रहते हैं. लेकिन इसका संगीत थोड़ा नया सा लगता है. और इरशाद कामिल के शब्द तो हैं ही. एक नज़र देखिए:
आंखों को ख्वाब देना खुद ही सवाल करके
खुद ही जवाब देना मेरी तरफ से
बिना काम काम करना, जाना कहीं हो चाहे
हर बार ही गुज़रना तेरी तरफ से
ये कोशिशें तो होंगी कम नहीं
न चाहिए कुछ तुम से ज्यादा तुम से कम नहीं
2. फिर चला
गायक: जुबिन नौटियाल
लिरिक्स: कुणाल वर्मा
संगीत: पायल देव
फिल्म ‘गिन्नी वेड्स सन्नी’ इस साल ख़बरों में रही क्योंकि इसमें रीमिक्स किया हुआ गाना ‘सावन में लग गई आग’ सुर्ख़ियों में था. लेकिन इस फिल्म में ही एक गाना और था, जो चुपचाप लोगों द्वारा पसंद किया गया. कहीं-कहीं इस गाने को सुनकर एकबारगी ‘मर्डर’ फिल्म के ‘ऐ खुदा’ गाने की याद सी आ जाती है. जुबिन नौटियाल दर्द भरे गानों के लिए लोगों के बीच जाने जा रहे हैं. वहीं इस गाने के लिरिक्स लिखने वाले कुणाल वर्मा ने कई और लोकप्रिय गानों के लिरिक्स भी लिखे हैं. गौर फरमाइए:
क्यों आंसुओं से लिखने लगी है, अब जिंदगानी ये दास्तां
पहले थे हंसे जितना उतना बुरा लगता है
सब तो खो गया मुझसे अब किसके लिए रुकना है.
3. दिल जुलाहा
गायक: दर्शन रावल
लिरिक्स: स्वानंद किरकिरे
संगीत: प्रीतम
इस साल पसंद की गई चंद फिल्मों में से एक है ‘लूडो’. इसी फिल्म का ये गाना काफी रिफ्रेशिंग बीट वाला है. खुले खुले मन से दर्शन रावल ने गाया है इसको. मूड हल्का कर देने वाला ये गाना सुनते सुनते ‘तमाशा’ फिल्म की याद आती है. गाने की आत्मा उससे मेल खाती सी लगती है. स्वानंद किरकिरे ने शब्द भी वैसे ही चुने हैं इस गाने के लिए. गौर फरमाइए:
हो इश्क तराना छेड़ा है
सांसों की हर मनिया ने
रंग बिरंगा लागे सब
बेरंगी सी दुनिया में
4. ना रवा कहिये
गायिका: कविता सेठ
लिरिक्स: दाग़ देहलवी
संगीत: एलेक्स हेफेज /अनुष्का शंकर
चूंकि ये साल फिल्मों के लिहाज से इतना बढ़िया रहा नहीं, इसका फायदा OTT को काफी मिला. पैन्डेमिक के दौरान फिल्म थियेटर और मल्टीप्लेक्स बंद हो गए थे. एक समय बाद फिल्में भी OTT प्लेटफॉर्म्स पर रिलीज होना शुरू हो गईं, लेकिन संगीत के हिसाब से इस साल वेब सीरीज में भी बढ़िया काम हुआ. उदाहरण के लिए ‘अ सूटेबल बॉय’ ही ले लें. विक्रम सेठ के 100 तोला वजनी उपन्यास पर छह एपिसोड की बनी छोटी सी सीरीज. सबसे ज्यादा जिस चीज़ की तारीफ हुई, वो था इसका संगीत. कविता सेठ ने इसके गाने गाये हैं और क्या हद दर्जे तक डूबकर गाये हैं. ‘ना रवा कहिये’ दाग़ देहलवी की नज़्म है. इसे पहले फरीदा खानम जी भी गा चुकी हैं. अब दाग़ साहब की बात हो, तो लफ्ज़ और हर्फ़ की बहस बेमानी हो जाती है. एक नज़र देखिए:
सब्र फ़ुरकत में आ ही जाता है
पर उसे देर आश्ना कहिये
ना रवा कहिये ना सज़ा कहिये
कहिये, कहिये मुझे बुरा कहिये
5. लब पर आए
गायक: जावेद अली
लिरिक्स: समीर सामंत
संगीत: शंकर एहसान लॉय
जैसा अभी हमने कहा, OTT पर आने वाली सीरीज के संगीत और उनके गानों की लोकप्रियता अच्छी रही इस साल. भारतीय शास्त्रीय संगीत पर फोकस रखती हुई एक पूरी सीरीज ही रिलीज हुई. नाम है ‘बंदिश बैंडिट्स’. मेरी सहेली, जिसे क्लासिकल संगीत में रत्ती भर भी रुची नहीं थी, उसने एक बैठकी में बिंज वॉच किया इसे. ऐसे कई लोग और थे जिन्होंने सोशल मीडिया पर भी इसके गाने रिकमेंड किए. इसका ये गाना काफी चर्चित हुआ. लिरिक्स देखिए:
लड़ पछताऊं
समझ न पाऊं
रूठे पिया को कैसे मनाऊं
भेद जिया के किस को दिखाऊं
किस को बताऊं कलेश हो
6.घूम चरख्या
गायक: सुखविंदर सिंह
लिरिक्स: स्वानंद किरकिरे
संगीत: स्नेहा खानविलकर
‘रात अकेली है’ फिल्म से ये गाना ऐसा है जिसे सुनते हुए आप शब्दों में गुम हो जाते हैं. सुखविंदर सिंह को आम तौर पर लोग धड़ाम-भड़ाम टाइप गानों के लिए याद करते हैं. लेकिन उनकी गंभीर, खुरदुरी आवाज़ जब ऐसे शांत गाने गाती है, तो आप ठहर कर एक-एक शब्द चुभलाते हैं. संगीत के डिपार्टमेंट में स्नेहा खानविलकर ने गाने के मूड को ध्यान में रखते हुए ऐसा काम किया है, जो इस गाने के शब्दों को ओवरशैडो न करे. क्योंकि अपने आप में ही इस गाने के शब्दों में अलग लय और ताल है. देखिए कुछ शब्द:
ऊंघता-ऊंघता ढूंढता-ढूंढता
उलझनों में गिरह बांधता तोड़ता
दर्द के धागों को कातता गांथता
चरमराहट तेरी चीखता चीखता
7. खुलने दो
गायक: अरिजीत सिंह
लिरिक्स: गुलज़ार
संगीत: शंकर एहसान लॉय
लिरिक्स की बात हो और गुलज़ार साहब का नाम नहीं लिया जाए, ऐसा मुश्किल ही लगता है. फिल्म ‘छपाक’ का ये गाना उम्मीद वाला तो लगता ही है, साथ में अरिजीत सिंह की आवाज़ इसे और खूबसूरत बना देती है. एक एसिड अटैक सर्वाइवर लक्ष्मी अग्रवाल की जिंदगी पर आधारित फिल्म में दीपिका पादुकोण ने मुख्य किरदार निभाया था. इसकी वजह से वो लगातार सुर्ख़ियों में भी रहीं. ये फिल्म COVID -19 महामारी के भारत में फैलने से पहले रिलीज हुई थी थियेटर्स में, और इसे तारीफ भी मिली थी. ख़ास तौर पर गुलज़ार के ट्रेडमार्क तरीके में ये गाना अच्छा बन पड़ा है. बाकी उनका छायावाद तो है ही. एक नज़र देखिए.
मैली मैली सी सुबह धुलने लगी है
गिरह लगी थी सांस में
खुलने लगी है, खुलने लगी है
8. आबाद बरबाद
गायक: अरिजीत सिंह
लिरिक्स: संदीप श्रीवास्तव
संगीत: प्रीतम
‘लूडो’ फिल्म का एक गाना हम पहले भी इस लिस्ट में शामिल कर चुके हैं. लेकिन इसका ये गाना भी बेहतरीन बन पड़ा है. प्रीतम का संगीत है, और संदीप श्रीवास्तव ने बेहद नाज़ुक शब्दों का इस्तेमाल करते हुए लिखा है ये गाना. ये गाना सोशल मीडिया पर भी काफी चला था. प्रेम में दो किनारों के बीच जूझते इंसान की तड़प इस गाने में दिखाई देती है. जैसे कोई मांझी से कह रहा हो, या तो इस पार लगा दे या उस पार. सांस डूब रही है. देखिए लिरिक्स एक नज़र:
इतना अहसान कर दो, पूरे अरमान कर दो
लब पर आकर जो रुके हैं, ढाई वो हर्फ़ कह दो
मेरी सांसों से जुड़ी है तेरी हर सांस कह दो
9. मेरे लिए तुम काफी हो
गायक: आयुष्मान खुराना
लिरिक्स: वायु
संगीत: तनिष्क-वायु
फिल्म ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’ इसलिए भी ख़बरों में थी क्योंकि इस फिल्म में होमोसेक्शुअल संबंधों पर फोकस किया गया था. इस फिल्म का ये गाना आयुष्मान ने डूबकर गाया है. इस गाने में प्यार की बातें तो हैं, लेकिन एक हल्का-फुल्कापन है जो बिना गंभीर हुए भी बेहद सुंदर बातें कह जाता है. आप खुद देखिए लिरिक्स:
ये दुनिया मिले ना मिले हमको
खुशियां भगा देंगी हर गम को
तुम साथ हो फिर क्या बाकी है
मेरे लिए तुम काफी हो
10 . महफ़िल बर्खास्त हुई
गायिका: कविता सेठ
लिरिक्स: अमीर मिनाई
संगीत: एलेक्स हेफेज, अनुष्का शंकर
‘अ सूटेबल बॉय’ सीरीज से एक गाना हम इस लिस्ट में पहले भी ले चुके हैं. लेकिन इस गाने को चुनने का लोभ संवरण न किया जा सका. सीरीज के अंत में भी आता है ये गाना, और खत्म होते होते दिल में एक टीस दे जाता है. खालीपन सा रह जाता है देखने वाले के भीतर. इसलिए नहीं कि सीरीज ख़त्म हो गई है. बल्कि इसलिए कि सब कुछ बीत चुकने के बाद सन्नाटे से कैसे समझौता किया जाए, ये समझ नहीं आता. अमीर मिनाई साहब की लिखी हुई नज़्म एक अलग समय में ले जाती है. लिरिक्स देखिए:
महफ़िल बर्खास्त हुई
पतंगे रुख़्सत शम्मो से हो रहे हैं,
दुनिया का ये रंग और हम
कुछ होश नहीं है सो रहे हैं
11. उस्तत
गायक: मनप्रीत सिंह
गीत: हरमनजीत सिंह
संगीत: मनप्रीत सिंह
इंडिपेंडेंट सॉंग है. हरमनजीत सिंह ने इसके लिरिक्स लिखे हैं. छोटी सी कहानी है. हरमिंदर बोपराय की. ये शिल्पकार हैं. पैरालिसिस से जूझते हुए उन्होंने अपना करियर बनाया और हार नहीं मानी. उन्हीं की बचपन से लेकर अब तक की कहानी है. लिखने वाले हरमनजीत ने बॉलीवुड के लिए भी लिखा है. ‘लौंग लाची’, ‘आर नानक पार नानक’ के लिरिक्स भी इन्होंने लिखे हैं. कवि हैं मूल रूप से. इन्हें साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार भी मिल चुका है. इस गाने में उस्तत का मतलब है तारीफ, किसी के लिए बहुत मान. लिरिक्स देखिए:
हवावां दे ढोलक ज़मीन दे बिछौने
के रुत्तां दे लहंगे त्योहारां दी उस्तत
रंगां दी उस्ततआकारां दी उस्तत
12.एक टुकड़ा धूप
गायक: राघव चैतन्य
गीत: शकील आज़मी
संगीत: अनुराग सैकिया
घरेलू हिंसा पर बनी फिल्म ‘थप्पड़’ में तापसी पन्नू की काफी तारीफ हुई थी. इस फिल्म ने एक ज़रूरी बहस को भी हाईलाईट किया, जो चल काफी समय से रही थी लेकिन उसे फिल्म का एक प्लेटफॉर्म मिल गया. उसी फिल्म से ये गाना राघव चैतन्य ने बड़ी सफाई से निभाया है. शकील आज़मी भी आत्मा से कवि हैं. ‘हैक्ड’, ‘आर्टिकल 15’ जैसी फिल्मों के लिए भी गाने लिख चुके हैं. लिरिक्स पर एक नज़र डालिए :
तुर्की का एक तटीय इलाका है, जिसे मर्मरा क्षेत्र के नाम से जाना जाता है. यहां का बिल्सीक प्रदेश इस वक्त सुर्ख़ियों में है. क्यों? क्योंकि यहां सोने का खजाना मिला है. कितना सोना है? करीब 99 टन. इसकी मौजूदा कीमत करीब 600 करोड़ डॉलर आंकी जा रही है. भारतीय रुपये में हिसाब लगाएं तो ये करीब 44,000 करोड़ रुपये बैठती है. यह रकम कई देशों की जीडीपी से भी ज्यादा है. इन देशों में फिजी, मालदीव, लाइबेरिया, भूटान आदि कई देश शामिल हैं.
मर्मरा की जिस खनिज साइट से यह सोना मिला है, वह फ़र्टिलाइज़र प्रोड्यूसर कंपनी गुब्रेतास के अधीन है. गुब्रेतास के चेयरमैन फ़हरेतीन पोयराज ने तुर्की की न्यूज़ एजेंसी अनादोलू से बातचीत के दौरान खजाना मिलने की जानकारी दी. इसके बाद कंपनी के शेयर में करीब 28 फीसद की बढ़ोतरी देखी गई है. पोयराज ने बताया कि उनकी गुब्रेतास उर्वरक कंपनी ने साल 2019 में कोर्ट के फैसले के बाद एक दूसरी कंपनी से इस जगह का नियंत्रण हासिल किया था.
पोयराज ने दावा किया कि ये नई खदान दुनिया की टॉप पांच सोने की खदान में से एक है. अगले दो साल में इस खदान से सोने को निकाला लिया जाएगा. इससे तुर्की की इकॉनमी को बड़ा बूस्ट मिलेगा. तुर्की के ऊर्जा और प्राकृतिक संसाधन मंत्री फेथ डॉनमेज ने बताया कि सितंबर में तुर्की ने 38 टन सोने का उत्पादन करके रिकॉर्ड तोड़ा था. अगले पांच साल में गोल्ड के सालाना उत्पादन को 100 टन पहुंचाने का लक्ष्य है.
पाकिस्तान की न्यूज़ वेबसाइट ने दावा किया है कि जहां सोने की खदान मिली है, वहीं एर्तुगरुल ग़ाज़ी को जहां दफ़नाया गया था. सोशल मीडिया पर भी कई लोगों ने ऐसे दावे किए हैं. यह सच है कि एर्तुगरुल ग़ाज़ी को बिल्सीक प्रदेश के सोगात इलाके में दफ़नाया गया था, और सोने की ये खदान भी बिल्सीक प्रदेश में ही मिली है.
जाते-जाते एर्तुगरुल ग़ाज़ी को जानते जाइए
एर्तुगरुल ग़ाज़ी ऑटोमन साम्राज्य के संस्थापक उस्मान के पिता थे. एर्तुगरुल ग़ाज़ी को एक सेनानी के तौर पर जाना जाता है. एर्तुगरुल नाम से नेटफ्लिक्स पर एक शो भी है, जिसकी कई सीरीज़ आ चुकी हैं. इस शो को दुनियाभर में खूब सराहा गया है.