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May 23, 20181min00

अंग्रेजी में एक कहावत है Age is just a number. यानी कि उम्र सिर्फ एक नंबर है. इस कहावत का मतलब ये है कि आपकी उम्र भले ही कितनी कम या ज्‍यादा हो इससे फर्क नहीं पड़ता है. आमतौर पर इस कहावत का इस्‍तेमाल किसी ऐसे शख्‍स के बारे में बताने के लिए किया जाता है जिसकी उम्र तो बहुत ज्‍यादा होती है लेकिन जिंदगी जीने का तरीका किसी छोटे बच्‍चे या कम उम्र शख्‍स की तरह होता है. लेकिन हम यहां पर इस कहावत का इस्‍तेमाल 19 साल के एक लड़के के लिए कर रहे हैं. इस लड़के ने इतनी छोटी उम्र में ऐसा मुकाम हासिल किया है जिसे बड़े-बड़े हासिल नहीं कर पाते. जी हां, भारतीय मूल के अक्षय रूपारेलिया का नाम ब्रिटिन के सबसे युवा करोड़पतियों में शामिल हो गया है.
अक्षय महज 19 साल की उम्र में ही एक सफल बिजनेसमैन बन गए हैं. उनकी ऑनलाइन कंपनी Doorstep.co.uk 16 महीने के अंदर ही ब्रिटेन की 18 सबसे बड़ी ऑनलाइन कंपनियों में शुमार हो गई है. अक्षय की कंपनी का मूल्य एक साल में एक करोड़ 20 लाख पाउंड आंका गया है, जिसके बाद वे वहां के सबसे युवा करोड़पतियों में शामिल हो गए हैं.

जिस उम्र में बच्‍चे फुटबॉल और क्रिकेट खेलते हैं, कॉलेज की कैंटीन में मस्‍ती करते हैं उस उम्र में अक्षय अपनी पढ़ाई के साथ-साथ जमीनी सौदा करने का भी काम करते हैं. उनका दावा है कि उन्‍होंने जबसे अपना बिजनेस सेटअप किया है, तब से लेकर अबतक वह 10 करोड़ पौंड कीमत की जमीन का सौदा करवा चुके हैं. उन्‍होंने इस कंपनी की शुरुआत सात हजार पौंड उधार लेकर की थी, लेकिन अब उसकी कंपनी में 12 लोग काम करते हैं. अक्षय के पिता कौशिक एक केयर वर्कर हैं और मां रेणुका लंदन में ही दिव्यांग बच्चों के स्कूल में असिस्‍टेंट टीचर हैं.

अक्षय ने 6 महीने पहले doorstep.co.uk वेबसाइट को लॉन्च किया था. क्लास के वक्त अक्षय को काम करने में दिक्कत आती थी. इसलिए उन्होंने एक कॉल सेंटर को कॉन्ट्रैक्ट दिया ताकि जब स्कूल में क्लास चल रही हो तो कॉल सेंटर क्लाइंट के सवालों का जवाब दें और फिर क्‍लास के बाद अक्षय खुद क्लाइंट से बात करते.

अक्षय की कंपनी प्रॉपर्टी बेचने के लिए ब्रिटेन भर में सेल्फ इम्प्लॉयड मदर्स की मदद लेती है. खास बात यह है कि प्रॉपर्टी बेचने के लिए हजारों पाउंड वसूलने के बजाय उनकी कंपनी बहुत कम रकम लेती है. यही वजह है कि उनकी कंपनी कम समय में इतनी कामयाबी हासिल कर पाई. अक्षय के मुताबिक, ‘लोग मांओं पर भरोसा करते हैं. मेरे साथ जो भी मां करती है उसे ईमानदार होना चाहिए जो सिर्फ सच बताए.’

अक्षय को ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से इकनॉमिक्स और मैथमेटिक्स की पढ़ाई का ऑफर भी आया, लेकिन उन्होंने अपने बिजनेस पर ध्यान देने और उसे बढ़ाने का फैसला किया है. आपको बता दें कि अक्षय कंपनी के प्रॉफिट से हर महीने एक हजार पाउंड की बचत कर रहे हैं ताकि वो अपनी पहली कार ले सकें.

बहरहाल, हम तो यही कहेंगे कि अक्षय ने साबित कर दिया है कि अगर आप में जुनून और जज्‍बा हो तो आप सबकुछ हासिल कर सकते हो. भले ही आपकी उम्र कितनी ही छोटी क्‍यों न हो. हमारी ओर से अक्षय को ढेर सारी शुभकामनाएं.


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May 23, 20181min00

बड़े से बड़े सेलिब्रिटी के साथ रहना, महंगी से महंगी शैम्‍पेन पीना और प्राइवेट प्‍लेन से दुनिया जहान घूमना हम में से ज्‍यादातर लोगों के लिए किसी सपने से कम नहीं, लेकिन एक शख्‍स के लिए यह रोज की बात है. इस शख्‍स के लिए दिन-रात पार्टी करना ही कमाई का जरिया है. यानी कि जितनी पार्टी उतने पैसे.

जी हां, यहां बात हो रही है इंग्‍लैंड की लिसिस्‍टर सीटी के बल्‍ली सिंह की, जो अरबों की वीआईपी ईवेंट कंपनी चलाते हैं. उन्‍हें बेहद अमीरों और मशहूर लोगों के लिए पार्टी ऑर्गेनाइज करने के बदले में करोड़ों रुपये मिलते हैं. 42 साल के बल्‍ली को ‘द मोस्‍ट इंटरेस्‍टिंग मैन इन इंडिया’ (भारत का सबसे दिलचस्‍प आदमी) की उपाध‍ि भी मिली हुई है. दुनिया का बड़े से बड़ा शख्‍स और कंपनियां उनकी क्‍लाइंट हैं. यही नहीं बल्‍ली अपनी घड़‍ियों को शैम्‍पेन से धोने के लिए भाी मशहूर हैं. शैम्‍पेन की कीमत भी कोई मामूली नहीं बल्‍कि 17 लाख रुपये है. आपको यह जानकर हैरानी होगी कि दिन-रात पार्टी ऑर्गेनाइज करने का काम करने के बावजूद बल्‍ली शराब की घूंट तक नहीं पीते हैं.

बल्‍ली के पास पैसों की कोई कमी नहीं. तभी तो उन्‍होंने एक हफ्ते में दो फरारी खरीद डालीं वो भी अपना बैंक बैलेंस चेक किए बिना. हालांकि उनके लिए इस मकाम को हासिल करना आसान नहीं था. यही वजह है कि वो आज भी अपनी जड़ों से जुड़े हुए हैं. मल्‍टी-मिलेनियर बनने से पहले बल्‍ली हालांकि लिसिस्‍टर में अपने पिता की टेक्‍सटाइल फैक्‍ट्री में काम करते थे, लेकिन वो खुद अपनी पहचान बनाना चाहते थे. 16 साल की छोटी उम्र में जहां बच्‍चे मस्‍ती और खेल-कूद करना पसंद करते हैं वहीं उस उम्र में बल्‍ली खुद का नाइट क्‍लब चलाते थे.

बल्‍ली को बड़ा ब्रेक तब मिला जब मशहूर सिंगर सिस्‍को अपने यूके टूर के दौरान एक रात को यादगार बनाना चाहते थे. किसी दोस्‍त ने सिस्‍को को बल्‍ली के बारे में बताया कि वो इस काम को बेहतर ढंग से अंजाम दे सकते हैं. इसके बाद बल्‍ली ने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. उन्‍हें कई मशहूर हस्तियों के ऑर्डर मिलने लगे. साल 2009 में उन्‍होंने ‘द रिच लिस्‍ट’ नाम से कंपनी खोल ली. पार्टियों और ईवेंट ऑर्गेनाइजेशन के लिए उनकी कंपनी काफी मशहूर हो रही थी. उन्‍हें पूरे यूनाइटेड किंगडम से बड़े-बड़े कॉन्‍ट्रैक्‍ट मिल रहे थे. साल 2012 में उनकी कंपनी ने दुबई में आबू धाबी रेस वीकएंड ईवेंट का आयोजन किया.

बल्‍ली अब किसी ईवेंट के लिए कम से कम साढ़े आठ करोड़ रुपये लेते हैं. उनकी अब तक की सबसे महंगी फीस 170 करोड़ रुपये है, जो उन्‍होंने दुबई के एक प्राइवेट आईलैंड में ईवेंट आयोजित करने के ल‍िए ली थी. बहरहाल, हम तो यही कहेंगे कि आज भले ही आप बल्‍ली की किस्‍मत से रश्‍क खाएं और आपको यह सब बहुत असान लगे. लेकिन बल्‍ली ने इस मकाम को हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत की है. वो कहते हैं न कि मेहनत और डेडिकेशन के कोई विकल्‍प नहीं है.


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May 23, 20181min00

पटना | कुछ कर गुजरने की इच्छा और अपने जुनून की वजह से इस लड़की ने अपनी एक अलग पहचान बनाई है. आज लोग इस लड़की को ग्रीन लेडी के नाम से भी जानते हैं. बिहार के मुंगेर के एक छोटे से गांव बंगलवा की रहने वाली जया देवी को बचपन से ही पेड़-पौधों से खासा लगाव था. वह हमेशा से ही अपने आसपास पेड़ लगाने और उन्हें बचाने के लिए लड़ती रही हैं. आज कई वर्षों के संघर्ष के बाद जया मुंगेर समेत पूरे बिहार में ग्रीन लेडी के रूप में जानी जाती हैं. जया ने सिर्फ पर्यावरण के लिए ही काम नहीं किया. उन्होंने पहले अपने गांव और बाद में आसपास के गांवों की महिलाओं को जागरूक करना शुरू किया. उन्होंने सबको बताया कि वह अपने स्तर पर छोटी-छोटी चीजों से कैसे बदलाव कर सकते हैं.

महिलाओं को जागरूक करने से पहले जया ने खुदको प्रशिक्षित किया. उन्होंने इसके बाद आसपास की महिलाओं को हर दिन कम से कम एक मुट्ठी अनाज बचाने को तैयार किया. उन्होंने महिलाओं को बताया कि वह ऐसा करके अपने परिवार के लिए जरूरत भर अनाज बचा पाएंगे. जया की इस पहल के कुछ समय के बाद ही इलाके की ज्यादातर महिलाएं उनके साथ हो गईं. इसके बाद जया ने सभी महिलाओं को हर सप्ताह पांच रुपये बचाने को तैयार किया. जया के अनुसार स्वयं सहायता समूह में जब पैसे बचने लगे तब सभी महिलाओं ने उस पैसे को बैंक में जमा करा दिया. बाद में जो भी महिला इस समूह की सदस्य बनी उन्हें जरूरी खर्चो के लिए समूह से ही कम ब्याज पर पैसा मिलने लगे. इस वजह से वह साहूकारों से मिलने वाले कर्ज के चंगुल में फंसने से बच गए.

जया ने किसानों के लिए भी काम करना शुरू किया. इलाके में खेती के लिए पानी की समस्या को दूर करते हुए जया ने रेन वाटर हार्वेस्टिंग का प्रशिक्षण लिया. उनके इस कदम से 500 हेक्टेयर जमीन पर वाटरशेट बनने के बाद ने केवल खेती सरल हुई बल्कि अंडर ग्राउंड वाटर के लेवल में भी बढ़ोतरी हुई.


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May 19, 20181min00

बिजनेस छोटा हो या बड़ा अगर उसे सही तरह से चलाया जाए तो आपको सफल होने से कोई नहीं रोक सकता. आज ऐसे ही शख्स की कहानी बताने जा रहे हैं, जो चाय बेचकर लाखों रुपये कमा रहा है.

महाराष्ट्र के पुणे स्थित येवले टी हाउस के को- फाउंडर नवनाथ येवले इन दिनों चर्चा में हैं. वह चाय बेचकर हर महीने 12 लाख रुपये की कमाई करते हैं. वह एक दिन में वो करीब 3 से 4 हजार से ज्यादा चाय के कप बेचते हैं. इसी के साथ वह पुणे शहर में की तीन चाय के टी स्टॉल चलाते हैं.

यही नहीं उनके चाय के स्टॉल के वजह से कई लोगों को रोजगार भी मिल रहा है. स्टॉल पर करीब तीन दर्जन लोग काम करते हैं. वहीं उनका कहना है कि हम टी हाउस पर लोगों को रोजगार देने लगे हैं. जिसके साथ ही हमारे बिजनेस आगे बढ़ रहा है. बता दें, नवनाथ येवले जल्द ही येवले टी हाउस को इंटरनेशनल ब्रांड बनाने जा रहे हैं.

चाय बनाने से पहले की स्टडी

साल 2011 में उन्हें चाय को एक ब्रैंड की तरह स्थापित करने का आइडिया आया. लेकिन पुणे में कोई भी अच्छा चायवाला नहीं था इसलिए उन्होंने चार साल तक चाय की स्टडी की और उसके बाद अच्छी गुणवत्ता से चाय ब्रैंड बनाया.

वहीं भारतीयों को चाय पीना काफी पसंद है. ऐसे में पुणे में येवले टी हाउस आज लोगों के बीच काफी प्रसिद्ध है. इन टी स्टॉल पर हमेशा भीड़ लगी रहती है. यही वजह है कि टी हाउस का बिजनेस लगातार आगे बढ़ रहा है.


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May 19, 20181min00

खेती की ओर लगातार युवाओं का रुझान बढ़ता रहा है. आज ऐसे ही लड़के की कहानी बताने जा रहे हैं. जिन्होंने हाइड्रोपोनिक फार्मिंग करने के लिए अपनी सॉफ्टवेयर कंपनी को बेच दिया. गोवा में रहने वाले अजय नायक को हमेशा ये बात परेशान करती थी अगर वह खेती करेंगे, तो लोग क्या कहेंगे. लेकिन उन्होंने अपने दिल की सुनी और खेती में करियर  बनाया.

ऐसे शुरू किया करियर

अजय कर्नाटक के रहने वाले हैं. इंजीनियरिंग करने के बाद नौकरी की तलाश में वह गोवा पहुंच गए थे. जहां उन्होंने 2011 में अपनी मोबाइल एप्लीकेशन निर्माता कंपनी की शुरुआत की. जिसके बाद उनकी इस कंपनी ने काफी अच्छा बिजनेस किया. लेकिन एक सफल कंपनी के मालिक होने के बावजूद वे हमेशा रासायनिक तरीके से पैदा की गई सब्जियों को लेकर टेंशन में रहते थे. जिसके बाद उन्होंने सोचा कि जैविक विधि से खेती करने के साथ ही क्यों न किसानों को जागरूक भी किया जाए.

जिसके बाद वह खेती से संबंधित चीजों के बारे में पढ़ने लगे. उन्होंने पुणे (महाराष्ट्र) के एक हाइड्रोपोनिक फार्मर से ट्रेनिंग ली. ट्रेनिंग लेने के बाद साल 2016 में उन्होंने अपनी सॉफ्टवेयर कंपनी कोे खेती के लिए बेच दिया.

क्या है हाइड्रोपोनिक खेती

फसल उगाने की इस तकनीक में मिट्टी की जगह पानी ले लेता है. इसके अलावा इसमें पानी का भी उतना ही इस्तेमाल किया जाता है, जितनी फसल को जरूरत हो. पानी की सही मात्रा और सूरज के प्रकाश से पौधे अपना विकास करते हैं. इसमें अलग-अलग चैनल बना कर पोषक तत्त्वों युक्त पानी पौधों तक पहुंचाया जाता है.

लाखों रुपये में होती है कमाई

अजय को खेती के दौरान काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा. लेकिन कृषि फार्म में उन्होंने और उनकी टीम ने दिन-रात मेहनत की. आज अजय और उनकी टीम अपने कृषि फार्म की ऑर्गैनिक सब्जियों से हर महीने लाखों रुपए की कमाई करती है.

आज अजय की टीम हाइड्रोपोनिक फार्मिंग में अच्छे से जुट गई है. इस फार्म में फिलहाल वह सलाद से संबंधित वनस्पति ही उगा रहे हैं. आगे चल कर उसका खीरा, शिमला मिर्च और स्ट्राबेरी उगाने का भी इरादा है. उनके फार्म की सब्जियों की डिमांड राज्य के फाइव स्टार होटलों, सुपर मार्केट और कृषक बाजारों में काफी है.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक अजय ने बताया कि खेती की इस तकनीक में शुरुआती समय में लागत काफी ज्यादा आती है, लेकिन बाद में फायदा जरूर होता है. उन्होंने कहा देश में खाना सब चाहते हैं, लेकिन उगाना कोई नहीं चाहता.


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May 19, 20181min00

जो इंसान जीवन में कुछ अलग करना चाहते हैं वह अपना रास्ता बना ही लेते हैं. आज एक ऐसी ही लड़की के बारे में बताने जा रहे हैं जो 24 साल की उम्र में सरपंच गई. राजस्थान के भरतपुर जिले में रहने वाली 24 साल की शहनाज यहां के कामां पंचायत से सरपंच चुनी गई हैं. उन्होंने सरपंच के चुनाव को 195 वोटों से जीता और राजस्थान की पहली महिला MBBS डॉक्टर सरपंच बन गईं.

बता दें, शहनाज अभी उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद के तीर्थंकर महावीर मेडिकल कॉलेज से MBBS कर रही हैं. यहां उनका फाइनल ईयर चल रहा है. उन्होंने अपनी 10वीं तक की पढ़ाई गुरुग्राम के श्रीराम स्कूल से की उसके बाद 12वीं की पढ़ाई मारुति कुंज के दिल्ली पब्लिक स्कूल से पूरी की है.

कैसे सरपंच बन गईं शहनाज

शहनाज ने एक वेबसाइट को इंटरव्यू देते हुए बताया कि ‘मुझसे पहले मेरे दादाजी भी यहां से सरपंच थे. लेकिन पिछले साल अक्टूबर में कोर्ट ने वो चुनाव को खारिज कर दिया गया. जिसके बाद चर्चा शुरू होने लगी कि चुनाव में कौन खड़ा होगा.

उन्होंने बताया कि राजस्थान में सरपंच का चुनाव लड़ने के लिए दसवीं पास होना अनिवार्य है. शहनाज के दादाजी पर सरपंच के चुनाव में फर्जी शैक्षणिक योग्यता का सर्टिफिकेट देने का आरोप था, जिसके बाद कामां का सरपंच चुनाव रद्द कर दिया गया था.

बता दें, शहनाज का पूरा परिवार राजनीति में ही है. उनके दादा 55 साल तक सरपंच रहे. पिता गांव के प्रधान रहे हैं. मां राजस्थान से विधायक, मंत्री और संसदीय सचिव रही हैं. ऐसे में शहनाज का नाम सरपंच चुनाव के लिए दिया गया.

लड़कियों की शिक्षा पर काम

शहनाज सबसे युवा सरपंच बन गई हैं. टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए शहनाज ने कहा, कि लोग आज भी अपनी बेटियों को पढ़ने के लिए स्कूल नहीं भेजते हैं. मैं लड़कियों की शिक्षा पर काम करना चाहती हूं और उन सभी अभिभावकों को अपना उदाहरण दूंगी जो बेटियों को पढ़ने नहीं भेजते. बता दें, उन्हें गुरुग्राम के एक सिविल अस्पताल में अपनी इंटर्नशिप भी पूरी करनी है, जिसके बाद वह आगे पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई भी करना चाहती हैं.


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May 19, 20181min00

ब्रिटेन की रहने वाली एंड्रिया ज़ेफिराको दुनिया की सबसे सर्वश्रेष्ठ टीचर बन गई हैं. आर्ट्स और टेक्सटाइल की पढ़ाई करवाने वाली एंड्रिया चौथे वार्षिक वर्के फाउंडेशन ग्लोबल टीचर प्राइज 2018 अपने नाम किया है. बता दें कि एंड्रिया को पुरस्कार के साथ 6.5 करोड़ की पुरस्कार राशि भी प्रदान की गई. पुरस्कार विजेता एंड्रिया को दुबई में सम्मानित किया गया और वो ये अवार्ड जीतने वाली पहले यूके टीचर है.

इस प्रतियोगिता में 173 देशों के 30000 लोगों ने भाग लिया था, जिन्हें पीछे छोड़ एंड्रिया ने ये खिताब अपने नाम किया है. बता दें कि प्रतियोगिता में टर्की, साउथ अफ्रीका, कोलंबिया, फिलिपींस, यूएस, ब्राजील, बेल्जियम, ऑस्ट्रेलिया और नॉर्वे जैसे देशों के लोगों ने हिस्सा लिया था. उन्हें दुबई के प्रधानमंत्री शेख मोहम्मद बिन राशिद अल मखतौम ने सम्मानित किया है.

इस अवार्ड से सम्मानित होने के बाद उन्होंने छात्रों की परेशानियों के बारे में बताया कि वो किस तरह घर के शोरगुल वाले माहौल में पढ़ाई करते हैं. उनके अनुसार एक रूम में अकेले बैठकर पढ़ाई करना भी काफी मुश्किल होता है और कई छात्रों को पढ़ाई में ध्यान लगाने के लिए बाथरूम में पढ़ाई करनी पड़ती थी. बता दें कि एंड्रिया ने टीचिंग के अलावा भी कई सराहनीय कार्य किए हैं.

क्या है ग्लोबल टीचर प्राइज

ग्लोबल टीचर प्राइज की शुरुआत 2015 में हुई थी और इसे टीचिंग प्रोफेशन को एक सम्मान देने के लिए इसे शुरू किया था. इस पुरस्कार के लिए योग्य उम्मीदवार का चयन ग्लोबल टीचर प्राइज एकेडमी की ओर से किया जाता है, जिसमें शिक्षा क्षेत्र के एक्सपर्ट, हैड-टीचर, पत्रकार, लोक अधिकारी, कंपनी डायरेक्टर आदि होते हैं.


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May 19, 20181min00

कहा जाता है कि ज्यादा पढ़ाई करने से ही व्यक्ति सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंचता है, लेकिन आज हम एक ऐसे शख्स के बारे में बात कर रहे हैं जिसने स्कूल के दौरान ही पढ़ाई छोड़ दी थी. इस शख्स का नाम है त्रिशनीत अरोड़ा, जो साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट हैं. हाल ही में उन्हें फोर्ब्स की ‘एशिया 30 अंडर 30’ में आ गया है. 25 साल के त्रिशनीत अरोड़ा खुद की साइबर सिक्योरिटी फर्म टीएसी के सीईओ हैं.

चंडीगढ़ स्थित टीएसी सिक्योरिटी के पांच सौ से ज्यादा क्लाइंट हैं. कंप्यूटर की पढ़ाई किए बगैर ही त्रिशनीत ने इथिकल हैकिंग में खुद को स्थापित कर लिया और अब उनके 500 से ज्यादा देशी-विदेशी क्लाइंट्स में चार देशों की सरकारें भी शामिल हैं. चुनाव आयोग, सीबीआई, पंजाब पुलिस, गुजरात पुलिस, रिलायंस इंडस्ट्रीज और पेमेंट गेटवेज का सिक्योरिटी एसेसमेंट भी त्रिशनीत के हवाले है.

फोर्ब्स की सूची में नाम आने पर खुशी जाहिर करते हुए त्रिशनीत ने इंडिया टुडे से बातचीत में कहा कि साइबर सिक्योरिटी में रोज नई चुनौतियां सामने आती हैं. जैसे-जैसे कंप्यूटर नेटवर्क बढ़ रहा है, इसके हैक होने के खतरे भी बढ़ रहे हैं. फिलहाल टीएसी सिक्योरिटी अपने विस्तार में लगी हुई है. इसके लिए उसे बाजार के दिग्गज निवेशकों का भी साथ मिल रहा है. फोर्ब्स में नाम आने के लिए त्रिशनीत का नाम 2000 प्रविष्टियों में से चुना गया है. उन्हें एंटरप्राइज टेक्नोलॉजी कैटेगरी में “एशिया 30 अंडर 30” चुना गया है.

फोर्ब्स के जजों में भारत से इनफोसिस के एस.डी. शिबूलाल और चाइना रेनेसां के एमडी माइकल डू जैसे दिग्गज शामिल हैं. त्रिशनित अरोड़ा का कहना है कि बचपन से ही उन्हें कम्प्यूटर में रुची थी. ज्यादातर समय उनका वीडियो गेम खेलने में ही जाता था. देर तक कम्प्यूटर में बैठने पर उनके पिता को काफी टेंशन होती थी और वो रोज कम्प्यूटर का पासवर्ड बदल दिया करते थे. लेकिन त्रिशनित रोज पासवर्ड को क्रेक कर दिया करता था. इस चीज को देखकर उनके पिता भी प्रभावित हो गए और नया कम्प्यूटर लॉकर दे दिया. एक वक्त ऐसा आया जिससे उनकी जिंदगी बदल गई.


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May 19, 20181min00

छत्तीसगढ़ के रहने वाले समाज सेवी दामोदर गणेश बापट ने अपना जीवन समाज सेवा के नाम कर दिया. गणेश बापट कुष्ठ रोग से पीड़ित लोगों के दर्द पर प्यार का मरहम लगाते हैं और उन्होंने उनके लिए कई सराहनीय कार्य किए हैं. उनके इस काम को देखते हुए भारत सरकार ने नागरिक सम्मान पद्म श्री से सम्मानित किया है. वे छत्तीसगढ़ के चांपा से आठ किलोमीटर दूर ग्राम सोठी में भारतीय कुष्ठ निवारक संघ द्वारा संचालित आश्रम में कुष्ठ रोगियों की सेवा करते हैं.

बता दें कि सामाजिक कार्यकर्ता गणेश बापट न सिर्फ मरीजों के साथ रहते हैं बल्कि उनके हाथ का पकाया खाना भी खाते हैं. मरीजों के साथ खाना-पीना साझा कर उनका दर्द भी साझा कर लेते हैं और जागरूकता भी फैलाते हैं. कहा जाता है कि बापट ने 26 हजार मरीजों की जिंदगी में रोशनी भरी है.

उन्होंने नागपुर से पढ़ाई की और अपने पिता के देहांत के बाद नौकरी ढू्ंढने की कोशिश की. उन्होंने टीचर के रुप में अपने करियर की शुरुआत की और वो आदिवासी इलाकों में बच्चों को पढ़ाते थे. इस दौरान वो बीकेएनएस जाते थे जहां मरीजों से मिलते थे.

बता दें कि इस कुष्ठ आश्रम की स्थापना साल 1962 में कुष्ठ पीड़ित सदाशिवराव गोविंदराव कात्रे ने की थी, जहां वनवासी कल्याण आश्रम के कार्यकर्ता गणेश बापट सन 1972 में पहुंचे और कात्रे जी के साथ मिलकर उन्होंने कुष्ठ पीड़ितों के इलाज और उनके सामाजिक-आर्थिक पुनर्वास के लिए सेवा के अनेक कार्यक्रमों की शुरुआत की.


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May 19, 20181min00

अगर आपके हौसले बुलंद हैं तो आपकी राह में कितनी भी मुश्किलें आएं, आप अपने सपने पूरे कर सकते हैं. ऐसी ही कहानी है तमिलनाडु की रहने वाली कलईमनि की, जिनकी राह में कई मुश्किलें आने के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी. बता दें कि कलईमनि की उम्र 45 साल है और उन्होंने राष्ट्रीय-राज्य स्तर पर चार गोल्ड मेडल और कई अवॉर्ड अपने नाम किए हैं. 45 साल की उम्र में आज भी कलईमनि हर रविवार को 21 किलोमीटर की दौड़ लगाती हैं.

टीओई के अनुसार खास बात ये है कि कलईमनि अपने परिवार को पालने के लिए चाय की स्टॉल भी चलाती हैं. अब उनका लक्ष्य 41 किमी मैराथन में भाग लेना है. उनका कहना है कि ‘मास्टर ऐथलेटिक चैंपियनशिप में भाग में लेने के लिए कोई भी अप्लाई कर सकता है चाहे उसकी उम्र 100 साल क्यों न हो. बस आपको इसके लिए खुद को फिट और स्वस्थ रखना है.’

आर्थिक दिक्कतों का सामना करते हुए कलईमनि इस उम्र में 21 किलोमीटर की मैराथन में हिस्सा लेती हैं और वो 41 किलोमीटर की मैराथन पूरी करना चाहती हैं. उन्होंने दसवीं तक पढ़ाई की है और वो स्कूल में भी खेलकूद में रूचि रखती थीं. कलईमनि के दोनों बेटे स्कूल वैन ड्राइवर हैं और उनकी बेटी-बेटी बीएससी की पढ़ाई कर रही है.

कलईमनि ने दिसबंर 2017 में करूर जिले के पुगलोर में स्टेट लेवल ऐथलेटिक मीट में उन्होंने तीन गोल्ड मेडल जीते. इससे पहले 2014 में भी उन्होंने कोयंबटूर में नेशनल मास्टर्स ऐथलेटिक्स चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीता था. उन्होंने बताया कि वह लगातार मैराथन में हिस्सा लेना चाहती थीं, इसलिए फीनिक्स रनर्स टीम जॉइन कर मैराथन के लिए ट्रेनिंग ली.



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